◆ सरदार वल्लभभाई पटेल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख व्यक्ति थे। जो बाद में भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और पहले गृह मंत्री बने। 565 रियासतों को एक नए स्वतंत्र भारत में एकीकृत करने में सरदार पटेल का योगदान अविस्मरणीय है।
◆ सरदार पटेल की इस पोस्ट में जिन्हें भारत के लौह पुरुष के रूप में जाना जाता है। हम उनके जीवन, दृष्टि, विचारों, उपाख्यानों और आधुनिक भारत में महत्वपूर्ण योगदान के बारे में जानेंगे।
सरदार पटेल का जीवन परिचय :-
जन्म | वल्लभभाई झावेरभाई पटेल 31 अक्टूबर 1875 नाडियाड , बॉम्बे प्रेसीडेंसी ,ब्रिटिश भारत |
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मृत्यु | 15 दिसंबर 1950 (आयु 75 वर्ष) बॉम्बे , बॉम्बे राज्य , भारत |
मौत का कारण | दिल का दौरा |
राजनीतिक दल | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
पत्नी | झवरबेन पटेल |
बच्चे | मणिबेन पटेल दहीभाई पटेल |
मां | लाद बाई |
पिता | झावेरभाई पटेल |
व्यवसाय | बैरिस्टर, राजनीतिज्ञ, कार्यकर्ता, स्वतंत्रता सेनानी |
पुरस्कार | भारत रत्न (1991)(मरणोपरांत) |
वल्लभभाई पटेल का प्रारंभिक जीवन :-
◆ वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को नाडियाड, गुजरात में हुआ था। उनके जन्मदिवस को अब राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
◆ सरदार पटेल किसान परिवार से थे। आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं होने के कारण उन्होंने अधिकतर पढ़ाई उधार की पुस्तक को लेकर कि। उन्होंने कानून की परीक्षा पास की
◆ कानून की परीक्षा पास करने के बाद सरदार पटेल गुजरात के गोधरा, बोरसद और आनंद में कानून का अभ्यास किया और वकालत में कुशलता और अनुभव हासिल किया।
लौह पुरुष सरदार पटेल हमेशा दूसरों के लिए बलिदान दिया
◆ पटेल का इंग्लैंड में कानून की पढ़ाई करने का सपना था। सरदार पटेल ने अपनी मेहनत और कमाई के बूते इंग्लैंड जाने के लिए सारे इंतजाम कर लिए थे।
◆ लेकिन जब उनको पता चला कि उनके बड़े भाई विट्ठलभाई पटेल भी सरदार पटेल की ही तरह इंग्लैंड जाने का सपना संजोया है। तो सरदार पटेल ने अपनी इच्छा को मारकर अपने बड़े भाई विट्ठलभाई पटेल को इंग्लैंड जाने दिया।
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सरदार पटेल की इंग्लैंड यात्रा :-
सन् 1911 में सरदार पटेल अपनी पत्नी की मृत्यु के 2 साल बाद इंग्लैंड की यात्रा की। और इंग्लैंड में उन्होंने मिडिल टेंपल इन कॉलेज में दाखिला लिया। तब सरदार पटेल की उम्र 36 उम्र थी। फिर भी उन्होंने 36 महीने का कोर्स 30 महीने में ही पूरा कर लिया और वापस भारत लौट कर सरदार वल्लभभाई पटेल अहमदाबाद के एक नामी और सफल बैरिस्टर बन गए।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार वल्लभभाई पटेल की भूमिका :-
◆ सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के स्वतंत्रता आंदोलन जब अपने पहले चरण में था। तो वह उस स्वतंत्रता आंदोलन के साथ नहीं थे और ना ही कोई योगदान दिया। सरदार पटेल की राजनीति भी कोई दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन 1917 में महात्मा गांधी के साथ मुलाकात के बाद उन्होंने अपना मन बदला और वह भी भारत की स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई में कूद पड़े और सक्रिय राजनीति में भी शामिल हुए।
◆ जिसके बाद सरदार वल्लभभाई पटेल कांग्रेस में शामिल हुए और उनको गुजरात कांग्रेस का सचिव बनाया गया।
◆ सरदार पटेल महात्मा गांधी जी का बहुत आदर करते थे। और उनकी हर बात को मानते थे महात्मा गांधी के ही कहने पर उन्होंने संघर्ष और मेहनत से पाई हुई अपनी वकालत की नौकरी छोड़ दी।
◆ 1918 के दौर में जब भारत में प्लेग और अकाल पड़ा हुआ था। तो सरदार पटेल ने करो की छूट के लिए संघर्ष किया और खेड़ा नामक स्थान में आंदोलन में भी अपनी भागीदारी दी।
◆ अब तक सरदार पटेल को सक्रिय राजनीति का अनुभव हो चुका था। और उन्होंने बहुत से आंदोलन में भी अपनी भागीदारी थी। सन् 1920 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जब भारत की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजो के खिलाफ असहयोग आंदोलन का आह्वान किया तो सरदार पटेल ने भी इस आंदोलन में शामिल होकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
◆ असहयोग आंदोलन में सदस्यों की भर्ती के लिए वह भारत के पश्चिम क्षेत्रों की यात्रा पर गए और 3 लाख सदस्यों को इस आंदोलन से जोड़ा। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कांग्रेस पार्टी के आर्थिक हालत को सुधारने के लिए 15 लाख रुपए भी जुटाए। इससे पता चलता है कि सरदार पटेल ने भारत की स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत योगदान दिया।
◆ सन् 1923 में ब्रिटिश कानून के खिलाफ भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने को लेकर अंग्रेजों ने महात्मा गांधी को कैद कर लिया जिसके बाद सरदार वल्लभभाई पटेल ने नागपुर में अंग्रेजों के इस कानून के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व किया।
◆ 1928 में बारदोली सत्याग्रह के बाद बल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि दी गई और वह पूरे देश में लोकप्रिय हो गए।
◆ पंडित मोतीलाल नेहरु ने उनकी लोकप्रियता और प्रभाव को को देखते हुए कांग्रेस अध्यक्षता के लिए महात्मा गांधी से वल्लभभाई के नाम का सुझाव दिया।
◆ सन् 1930 में सरदार पटेल जब नमक सत्याग्रह का आंदोलन कर रहे थे तो अंग्रेजों ने उन्हें बिना किसी सबूत के मुकदमे में डाल दिया और उन्हें कैद कर लिया।
◆ सन् 1939 में दुनिया भर में द्वितीय विश्वयुद्ध का दौर चल रहा था। तो नेहरू ने केंद्रीय और प्रांतीय विधायिकाओं से कांग्रेस को वापस लेने का फैसला किया। और इस फैसले का सरदार वल्लभभाई पटेल ने भी समर्थन किया।
◆ सन् 1942 में महात्मा गांधी के कहने पर सरदार पटेल ने मुंबई के ग्वालियर टैंक मैदान में जिसे अब अगस्त मैदान कहा जाता है। देशव्यापी सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया और सरदार पटेल ने इस आंदोलन में अपने कौशल और बुद्धि से बहुत लोगों का समर्थन हासिल किया।
◆ भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के दौरान, अंग्रेजों ने सभी कांग्रेस के प्रमुख नेतााओं के साथ-साथ सरदार वल्लभभाई पटेल को भी गिरफ्तार करके 1942 से 1945 तक अहमदनगर किले में कैद करके रखा।
कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में सरदार वल्लभभाई पटेल :-
◆ सन् 1931 में गांधी-इरविन समझौते के बाद सरदार पटेल को कराची के लिए कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया।
◆ सरदार वल्लभभाई पटेल ने कांग्रेस में अध्यक्ष पद पर रहते हुए नागरिकों की स्वतंत्रता और उनकी रक्षा के लिए कदम उठाए। उन्होंने अछूत जैसी समस्याओं का भी खात्मा करने के लिए कदम उठाए। उन्होंने मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी के लिए भी लड़ाई लड़ी। सरदार पटेल भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाना चाहते थे और इसकी वकालत भी करते थे।
◆ पटेल ने कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अपने पद का इस्तेमाल गुजरात में किसानों के लिए जनकी जमीनों की रक्षा के लिए किया।
सरदार वल्लभभाई पटेल उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के रूप में :-
◆ स्वतंत्रता के बाद, वह भारत के पहले उप प्रधानमंत्री बने। स्वतंत्रता की पहली वर्षगांठ पर, पटेल को भारत के गृहमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था। वह राज्य विभाग और सूचना और प्रसारण मंत्रालय के प्रभारी भी थे।
◆ भारत के पहले गृह मंत्री और उप प्रधान मंत्री के रूप में, पटेल ने पंजाब और दिल्ली से भागे शरणार्थियों के लिए राहत प्रयासों का आयोजन किया और शांति बहाल करने के लिए काम किया।
◆ सरदार पटेल ने राज्यों के विभाग का कार्यभार संभाला और 565 रियासतों को भारत संघ में मिलाने का कार्य किया। उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, नेहरू ने सरदार को ‘नए भारत का निर्माता और समन्वयक’ कहा।
◆ लेकिन सरदार पटेल बहुत दिनों तक स्वतंत्र भारत में अपना योगदान नहीं दे पाए। और भारत की आज़ादी के मात्र तीन साल बाद ही 15 दिसंबर 1950 को 75 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
रियासतों के एकीकरण में सरदार वल्लभभाई पटेल की भूमिका :-
◆ सरदार पटेल ने अपने खराब स्वास्थ्य और उम्र के बावजूद भी संयुक्त भारत बनाने के बड़े उद्देश्य को पूरा किया। भारत के पहले गृह मंत्री और उप प्रधान मंत्री के रूप में, सरदार पटेल ने भारतीय संघ में लगभग 565 रियासतों के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
◆ त्रावणकोर, हैदराबाद, जूनागढ़, भोपाल और कश्मीर जैसी रियासतें भारत में शामिल किया।
◆ वल्लभ भाई पटेल ने रियासतों के एकीकरण में सबकी एक ही राय बनाने का पूरा प्रयास किया। लेकिन कुछ रियासतों को एक साथ लाने के लिए उन्होंने साम-दाम-दंड-भेद तरीके अपनाने में भी संकोच नहीं किया।
◆ जूनागढ़ के नवाब और हैदराबाद के निजाम द्वारा भारत संघ में विलय से इनकार करने पर सरदार वल्लभभाई पटेल ने बल का प्रयोग किया और इन रियासतों को भारत में शामिल किया जिससे भारत संघ को और मजबूती मिली।
◆ सरदार वल्लभभाई पटेल ने ब्रिटिश भारतीय क्षेत्र के साथ-साथ रियासतों को भी जोड़ा और भारत में संतुलन बनाया।
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क्या सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे ?
◆ 15 जनवरी सन 1942 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की बैठक में जो कि वर्धा में आयोजित हुई थी, पंडित जवाहरलाल नेहरू अपने औपचारिक राजनीतिक संरक्षण के रूप में नामित करने की इच्छा व्यक्त की। गांधी जी ने कहा ‘राजा जी नहीं, सरदार वल्लभभाई नहीं, बल्कि जवाहरलाल मेरे उत्तराधिकारी होंगे’ जब मैं जाऊंगा, तो वे मेरी भाषा बोलेंगे।
◆ सरदार वल्लभ भाई पटेल की स्वतंत्र भारत में कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं थी। सरदार पटेल महात्माा गांधी की बहुत इज्जत करते थे। और उनकी बात हमेशा मानते थे। गांधी जी चाहते थे कि उनके बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत की जनता का नेतृत्व करें।
◆ महात्मा गांधी जी तो नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहते थे। लेकिन सन् 1946 में जब कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए बैठक हो रही थी, तो प्रदेश कांग्रेस समितियों ने सरदार पटेल को अपने नेता के रूप में चुना। कुल 15 प्रदेश कांग्रेस समिति सदस्यों में से 12 ने सरदार वल्लभभाई पटेल को कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए समर्थन किया। जिससे पता चलता है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल के अंदर नेतृत्व की क्षमता और आयोजक की प्रतिभा है।
◆ जब पंडित जवाहरलाल नेहरू को प्रदेश कांग्रेस कमेटी की पसंद के बारे में पता चला, तो उनको बहुत दुख हुआ क्यों कि वह कांग्रेस का अध्यक्ष बनना चाहते थे। महात्मा गांधी को पता था कि जवाहरलाल नेहरू हमेशा से ही कांग्रेस का अध्यक्ष बनने की इच्छा रखते थे। गांधी को मालूम था कि जवाहरलाल नेहरू कभी भी दूसरा स्थान लेने के लिए तैयार नहीं होंगे और महात्मा गांधी ने सरदार पटेल से अपनी दावेदारी वापस लेने को कहा। सरदार पटेल हमेशा की तरह गांधी की बात को माना और अपनी दावेदारी को वापस ले लिया। जीवटराम भगवानदास कृपलानी को जिम्मेदारी सौंपने से पहले, 1946 में नेहरू ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला।
◆ नेहरू ने 2 सितंबर 1946 से 15 अगस्त 1947 तक भारत की अंतरिम सरकार का नेतृत्व किया। नेहरू प्रधानमंत्री के साथ वायसराय की कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष भी थे। सरदार पटेल को गृह मंत्रालय और सूचना और प्रसारण विभाग का कार्यभार सौंपा गया।
पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल के बीच सामंजस्य और मतभेद :-
◆ पंडित नेहरू और सरदार पटेल के बीच एक अनूठा सामंजस्य था। वे एक दूसरे की प्रतिष्ठा का ख्याल और सम्मान करते थे। वह दोनों भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो महान नेता थे। यह जरूर है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल के बीच काम करने की तरीके को लेकर मतभेद भी रहते थे लेकिन दोनों का लक्ष्य है। एक ही था और वह था भारत की प्रगति और सुरक्षा।
◆ सरदार पटेल और नेहरू के बीच मतभेद ज्यादातर कार्य करने के तरीके और विचारधाराओं में ही रहता था। ऐसा नहीं था कि हमेशा वे हमेशा एक दूसरे के खिलाफ रहते थे। नेहरू एक वामपंथी या समाजवाद की विचारधारा का पालन करते थे। जबकि सरदार पटेल के अंदर दक्षिणपंथी की विचारधारा थी।
◆ 1950 में पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल के बीच कांग्रेस के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों लेकर अलग-अलग विचार थे। नेहरू जेबी कृपलानी को राष्ट्रपति बनाना चाहते थे। जबकि सरदार पटेल पुरुषोत्तम दास टंडन की दावेदारी करते थे। बाद में जब दोनों के बीच सहमति नहीं बनी तो चुनाव कराया गया और सरदार पटेल के उम्मीदवार पुरुषोत्तम दास टंडन की जीत हुई।
सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर का निर्माण करवाया :-
सोमनाथ मंदिर को मुगलों द्वारा कई बार लूटा गया और कई बार इसको थोड़ा भी गया। सरदार पटेल को लगा कि सोमनाथ मंदिर का पुनः निर्माण कराना चाहिए और 13 नंबर 1947 को उप प्रधानमंत्री वल्लभ भाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर का निर्माण कराने की ठानी और अपने वादे को पूरा करते हुए उन्होंने भव्य सोमनाथ मंदिर का निर्माण भी कराया।
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जीवन परिचय। आइडियाज़ ऑफ ए नेशन: वल्लभभाई पटेल।सरदार वल्लभ भाई पटेल को लौह पुरुष क्यों कहा जाता है। रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण। रियासतों का भारतीय संघ में विलय एक कठिन समस्या थी इसका समाधान किस प्रकार किया गया। आजादी के बाद भारत का एकीकरण
सरदार पटेल के आर्थिक विचार :-
● 1917 से 1950 तक सरदार भारतीय राजनीति में हावी रहे। सबसे पहले, वे स्वतंत्रता संग्राम में सबसे आगे थे। फिर, 1947 में स्वतंत्रता के बाद, उप प्रधान मंत्री के रूप में, उन्होंने गृह, राज्यों और सूचना और प्रसारण के महत्वपूर्ण विभागों का आयोजन किया। लौह पुरुष और आधुनिक भारत के संस्थापक, उन्होंने पाकिस्तान में बड़ी संख्या में अधिकारियों के स्थानांतरण के बाद भारतीय नौकरशाही का पुनर्गठन किया, रियासतों को भारतीय संघ में एकीकृत किया और भारतीय संविधान को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
●क्षेत्रीय समेकन के बाद, सरकार और उद्योगपतियों के लिए तात्कालिक लक्ष्य वसूली और पुनर्निर्माण के लिए एक महान राष्ट्रीय प्रयास में भाग लेना था। इसका उद्देश्य देशवासियों के जीवन स्तर में सुधार लाना था। अंग्रेजों को अपने शब्दों में, केवल उनकी प्रतिमाओं को छोड़कर, उनके पास ले जाना था। आर्थिक नियंत्रण के कई उपकरण जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने युद्ध के प्रयास के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए रखा था, अभी भी काम कर रहे थे। इसलिए, आयात गंभीर रूप से प्रतिबंधित रहा, और युद्ध के लिए भारत के निर्यात से अर्जित विदेशी मुद्रा अभी भी बैंक ऑफ इंग्लैंड द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक को हस्तांतरित नहीं की गई थी। परिणामस्वरूप, एक बड़ा स्टर्लिंग संतुलन जमा हो गया था, लेकिन युद्ध से क्षतिग्रस्त इंग्लैंड बकाया का निपटान करने की स्थिति में नहीं था। मुद्रास्फीति नियंत्रण से बाहर हो गई थी। मई 1949 में इंदौर में इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC) की बैठक में बोलते हुए, सरदार पटेल ने भारतीय अर्थव्यवस्था का कायाकल्प करने का अपना इरादा घोषित किया। उन्होंने कहा, “हमारी गुलामी की लंबी अवधि और हाल के वर्षों के युद्ध ने हमारी अर्थव्यवस्था के जीवन-रक्त को सूखा दिया है। अब जब हमने सत्ता संभाली है, फिर से इसे फिर से जीवंत करने के लिए हम पर है; बूंद-बूंद करके नया खून डालना पड़ता है
● कमजोरियों के लिए जोड़ा गया विभाजन और इस प्रकार व्यावसायिक विश्वास को बहाल करना सर्वोपरि था। विभाजन के आगे, कलकत्ता के चिंतित व्यापारी उस शहर से बाहर जाना चाहते थे जिसे उन्होंने पीढ़ियों से संचालित किया था। सरदार ने उन्हें अस्वीकार करने का बीड़ा उठाया और उन्हें रहने के लिए कहा। उन्होंने कोलकाता में कहा, “मैंने उन्हें रहने की सलाह दी क्योंकि मैं निश्चित था कि पृथ्वी पर कोई भी शक्ति कलकत्ता को भारत से दूर नहीं ले जा सकती है।” पड़ोसी ने समझौतों का सम्मान करने से इनकार कर दिया; यहां तक कि अग्रिम रूप से भुगतान किया गया जूट वितरित नहीं किया गया था। सरदार पटेल ने महसूस किया कि भारत के पास खोने का समय नहीं था और उसने आत्मनिर्भरता का आह्वान किया। जनवरी 1950 में दिल्ली में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए, उन्होंने जोर देकर कहा, “यदि वे समझौतों को लागू करने की गारंटी नहीं दे सकते हैं, तो हम उनके लिए बेहतर नहीं थे।
● पटेल के विचारों और भारत की आर्थिक चुनौती के प्रति दृष्टिकोण को बहुत हद तक ऐतिहासिक रूप से स्थापित किया गया था, उस समय भी और एक राष्ट्र-निर्माता की भूमिका और भारत के राजनीतिक लोकतंत्र के संस्थापक द्वारा। आत्मनिर्भरता उनके आर्थिक दर्शन के प्रमुख सिद्धांतों में से एक थी, जिसके आधार पर, उनके विचार महात्मा गांधी की तुलना में पंडित नेहरू के अधिक करीब थे, जिन्होंने ग्रामीण स्तर पर आत्मनिर्भरता का समर्थन किया था। सरकार के लिए उन्होंने जिस भूमिका की परिकल्पना की थी, वह कल्याणकारी राज्य की थी, लेकिन उन्होंने महसूस किया कि अन्य देशों ने विकास के अधिक उन्नत चरणों में काम किया है। वह समाजवाद के लिए उठाए गए नारों से नाखुश थे, और इस पर बहस करने से पहले भारत के लिए धन की आवश्यकता के बारे में बात की थी कि इसके साथ क्या करना है, इसे कैसे साझा करना है। राष्ट्रीयकरण उन्होंने पूरी तरह से खारिज कर दिया; स्पष्ट है कि उद्योग को व्यापार समुदाय का एकमात्र संरक्षण होना चाहिए। न ही वह योजना बनाने में एक महान विश्वास था, विशेष रूप से विकसित और औद्योगिक देशों में इस तरह का अभ्यास किया।
● वह नियंत्रण के लिए नहीं था। उदासीनता, भाग में थी, क्योंकि उन्हें लागू करने के लिए बस पर्याप्त कर्मचारी नहीं थे। वह एक प्रशासनिक क्षमता के साथ काम कर रहे थे, जिसके कारण अधिकारियों की संख्या में कमी आई और पाकिस्तान जाने और दुनिया भर में नए दूतावासों में वरिष्ठ सिविल सेवकों की पोस्टिंग करने का विकल्प चुना गया। अप्रैल, 1950 में राज्यों के मुख्यमंत्रियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “हम एक चौथाई सेवा के साथ देश के प्रशासन को चलाते हैं, जो कि तब अस्तित्व में था जब हमने सत्ता संभाली थी। पचास प्रतिशत लोग जिनकी उपस्थिति कानून और व्यवस्था बनाए रखने और अधीनस्थों को दक्षता के साथ काम करने के लिए पर्याप्त थी, और यहां तक कि वे भी चले गए। ”
● उसे करने के लिए, लाभ का मकसद एक उत्तेजना के लिए एक महान उत्तेजक था, कलंक नहीं। उन्होंने इसे पूरी तरह से मंजूरी दे दी, और गैर-पूंजीवादी वर्गों, मध्यम वर्गों, श्रम और यहां तक कि कृषकों के लिए भी इसकी वकालत की। इसका मतलब यह नहीं है कि उन्होंने धन की एकाग्रता को एक सामाजिक समस्या और अनैतिक के रूप में नहीं पहचाना। उन्होंने वास्तव में, सभी उद्देश्यों को पार करने के लिए नागरिक चेतना और राष्ट्रीय कर्तव्य की उच्च भावना की अपील की। उनका तर्क था कि यह केवल आर्थिक उपक्रमों में जमा की गई धनराशि को चैनलाइज करने के लिए नैतिक और देशभक्ति नहीं है, बल्कि आर्थिक रूप से व्यावहारिक भी है, जहां रिटर्न निश्चित रूप से समृद्ध था। इसके अलावा, देश की आर्थिक समस्याओं के कारण अराजकता पैदा हुई तो क्या अच्छा हो सकता है। उन्होंने लालच के खिलाफ लगातार सलाह दी। परिश्रम करने के लिए, उन्होंने कहा, बस एक शेयर का दावा करने से पहले धन बनाने में भाग लें, और मजदूरों-नियोक्ता संबंधों पर महात्मा गांधी के दर्शन की वकालत की। उन्होंने कहा कि महात्मा के तरीके, संवैधानिक साधनों के माध्यम से श्रम को उसके वैध इनाम में ला सकते हैं।
● वह भारत का औद्योगीकरण जल्दी देखना चाहते थे। बाहरी संसाधनों पर निर्भरता कम करने की अनिवार्यता। एक आधुनिक सेना के लिए आवश्यक उपकरण थे जो केवल मशीनों का उत्पादन कर सकते थे: हथियारों और गोला-बारूद के अलावा, वर्दी और स्टोर, जीप और मोटर कार, हवाई जहाज और पेट्रोल। लेकिन मशीनरी घनी आबादी वाले देश में आलस्य की “महान बीमारी” को हल करने वाली नहीं थी। “लाखों बेकार हाथ जिनके पास कोई काम नहीं है, मशीनों पर रोजगार नहीं पा सकते हैं” , उन्होंने अप्रैल 1950 में मुख्यमंत्रियों की बैठक को संबोधित करते हुए कहा। मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान देश होने के नाते, कृषि पुनरुद्धार प्राथमिक महत्व का था।
● उन्होंने निवेश की अगुवाई में विकास किया और कहा, “कम खर्च करें, अधिक बचत करें, और जितना संभव हो उतना निवेश करें, हर नागरिक का आदर्श होना चाहिए।” उन्होंने समाज के हर वर्ग – वकीलों, किसानों, मजदूरों से अपील की। , व्यापारियों, व्यापारियों और सरकारी सेवकों को हर ‘अन्ना ’को बचाने के लिए जो देश के निर्माण उद्यमों में उपयोग के लिए अपनी बचत को सरकार के हाथों में सौंप सकते हैं। इसी संबोधन में, उन्होंने हर अतिरिक्त पैसा बचाने पर जोर दिया और कहा, “हमारे पास पूंजी होनी चाहिए, और यह पूंजी हमारे ही देश से आनी चाहिए। हम यहां और वहां के अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से उधार लेने में सक्षम हो सकते हैं, लेकिन जाहिर है कि हम अपनी रोजमर्रा की अर्थव्यवस्था को विदेशी उधार पर आधारित नहीं कर सकते। ”यह स्वैच्छिक बचत और बचतकर्ताओं के लिए निवेश के अपने पसंदीदा साधनों का चयन करने के लिए था।
● सरदार पटेल का दृष्टिकोण संतुलित, व्यावहारिक और उदार था। उनके लिए अर्थशास्त्र एक “गहन व्यावहारिक विज्ञान” था। कीमतों में अस्थायी रुकावटें या कृत्रिम कटौती या निवेश की उत्तेजना में कमी और मनमानी नीतियां उन्हें स्वीकार्य नहीं थीं। वह चाहते थे कि भारतीय अर्थव्यवस्था उत्पादन, औद्योगिक और कृषि की बढ़ी नींवों और बढ़ी हुई सम्पदा पर आधारित हो।
● पटेल ने गुजरात में सहकारी आंदोलनों का मार्गदर्शन किया और कायरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ की स्थापना में मदद की, जो पूरे देश में डेयरी फार्मिंग के लिए एक गेम चेंजर साबित हुआ।
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सरदार पटेल और भारत का विभाजन :-
◆ सरदार ने अपने प्रारंभिक वर्षों में ब्रिटिश भारत के विभाजन का विरोध किया। हालाँकि, उन्होंने दिसंबर 1946 तक भारत के विभाजन को स्वीकार कर लिया। वीपी मेनन और अबुल कलाम आज़ाद सहित कई ने महसूस किया कि पटेल नेहरू की तुलना में विभाजन के विचार के प्रति अधिक ग्रहणशील थे।
◆ सरदार पटेल ने ब्रिटिश भारत के दो टुकड़ों में विभाजन का शुरुआत में बहुत कड़ा विरोध किया लेकिन दिसंबर 1946 में उन्होंने भारत के विभाजन को स्वीकार करने वाले पहले कांग्रेसी नेता बने और अंत में नेहरू ने भी भारत के विभाजन को स्वीकार कर लिया।
◆ हालांकि एपीजे अब्दुल कलाम आजाद अंत तक विभाजन के कट्टर आलोचक रहे हैं। आजाद ने कहा कि जब उन्होंने सरदार वल्लभ भाई पटेल से विभाजन की आवश्यकता क्यों है का जवाब में कहा कि “हमें यहां पसंद है या नहीं लेकिन भारत में दो राष्ट्र थे” इससे अब्दुल कलाम आजाद को बहुत पीड़ा हुई ।
हिंदुओं के अधिकारों के रक्षक सरदार वल्लभभाई पटेल :-
◆ राज मोहन गांधी के अनुसार “पटेल भारतीय राष्ट्रवाद का हिंदू चेहरा थे। नेहरू भारतीय राष्ट्रवाद का धर्मनिरपेक्ष और वैश्विक चेहरा थे। हालांकि, दोनों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक ही छतरी के नीचे काम किया।”
◆ सरदार वल्लभ भाई पटेल हिंदुओं के अधिकारों की खुले रूप से समर्थन करते थे। इसी कारण ने उनको अल्पसंख्यकों के बीच ज्यादा लोकप्रिय नहीं बनने दिया।
◆ सरदार पटेल हृदय से हिंदू थे और वह हिंदुओं के अधिकारों की खुले रूप से समर्थन भी करते थे। लेकिन उन्होंने कभी सांप्रदायिक रूप नहीं अपनाया वह हमेशा से ही भारत के धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाना चाहते थे। गृह मंत्री के रूप में विभाजन के दौरान उन्होंने दिल्ली में मुस्लिम समुदाय की दंगों में रक्षा की।
सरदार वल्लभ भाई पटेल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
◆ पटेल ने शुरू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू हित में उनके प्रयासों के प्रति नरम रुख अपनाया। हालांकि, गांधी की हत्या के बाद, सरदार पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया।
◆ पटेल ने 1948 में संघ पर प्रतिबंध लगाने के बाद लिखा। ” उनके सभी भाषण सांप्रदायिक जहर से भरे हुए थे”, जहर के अंतिम परिणाम के रूप में, देश को गांधीजी के अमूल्य जीवन का बलिदान भुगतना पड़ा।”
पटेल ने एक साल बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रतिबंध हटा लिया :-
◆ जब गोलवलकर ने प्रतिबंध हटाने की शर्तों के अनुसार कुछ वादे करने पर सहमति व्यक्त की तब 11 जुलाई 1949 को आरएसएस पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया गया। भारत सरकार ने प्रतिबंध हटाने की घोषणा करते हुए कहा कि संगठन और उसके नेता ने संविधान और ध्वज के प्रति वफादार रहने का वादा किया था।
स्टैचू ऑफ यूनिटी :-
● परियोजना की घोषणा पहली बार 2010 में हुई थी और प्रतिमा का निर्माण अक्टूबर 2013 में लार्सन एंड टुब्रो द्वारा शुरू किया गया था , जिसे गुजरात सरकार से 89 2,989 करोड़ का ठेका मिला था। यह भारतीय मूर्तिकार राम वी सुतार द्वारा डिजाइन किया गया था , और इसका उद्घाटन 31 अक्टूबर 2018 को पटेल के जन्म की 143 वीं वर्षगांठ पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया था।
● स्टैच्यू ऑफ यूनिटी 182 मीटर (597 फीट) की दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति है।
● यह चीन के हेनानप्रांत में स्प्रिंग टेम्पल बुद्ध की तुलना में 54 मीटर (177 फीट) ऊंची है ।
● भारत में पिछली सबसे ऊँची प्रतिमा आंध्र प्रदेश राज्य के विजयवाड़ा के पास स्थित पारिताला अंजनेय मंदिर में हनुमान की 41 मीटर (135 फीट) की प्रतिमा थी।
● मूर्ति को 7 किमी (4.3 मील) के दायरे से देखा जा सकता है।
● स्टैचू ऑफ यूनिटी का निर्माण साधु बेट नाम के एक नदी द्वीप पर किया गया है, जो नर्मदा बांध के सामने की ओर 3.2 किमी (2.0 मील) दूर है।
● 1 नवंबर 2018 को जनता के लिए खोलने के बाद 11 दिनों में 128,000 से अधिक पर्यटकों ने इसका दौरा किया।
● रामचंद्र गुहा जैसे कई इतिहासकारों का मानना है कि यह विडंबना है कि पटेल का दावा भाजपा द्वारा किया जा रहा है जब वह “खुद एक आजीवन कांग्रेसी थे”।
● भारत के लौह पुरुष कहे जाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा के लिए देश भर से लोहा एकत्र किया गया था।
● कांग्रेस नेता शशि थरूर ने आरोप लगाया कि भाजपा स्वतंत्रता सेनानियों और पटेल जैसे राष्ट्रीय नायकों की विरासत को हाइजैक करने की कोशिश कर रही थी क्योंकि उनके पास जश्न मनाने के लिए इतिहास में अपना कोई नेता नहीं है।
सरदार वल्लभभाई पटेल के उद्धरण
“मेरी संस्कृति कृषि है। “
–सरदार पटेल
हमने अपनी स्वतंत्रता हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत की; हमें इसे सही ठहराने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी ।
–सरदार पटेल
धर्म आदमी और उसके निर्माता के बीच का मामला है।
–सरदार पटेल
भारत के प्रत्येक नागरिक को यह याद रखना चाहिए कि वह एक भारतीय है और इस देश में उसका कुछ अधिकार है लेकिन कुछ कर्तव्यों के साथ।
–सरदार पटेल
आज हमें उच्च और निम्न, अमीर और गरीब, जाति या पंथ के भेदों को दूर करना चाहिए।
–सरदार पटेल
ताकत के अभाव में विश्वास का कोई फायदा नहीं है विश्वास और शक्ति, दोनों किसी भी महान कार्य को पूरा करने के लिए आवश्यक हैं।
–सरदार पटेल
जाति, समुदाय तेजी से गायब हो जाएगा। हमें इन सभी चीजों को तेजी से भूलना होगा। इस तरह की सीमाएं हमारे विकास को बाधित करती हैं।
–सरदार पटेल
निष्कर्ष
◆ सरदार पटेल ने हमेशा निस्वार्थ भाव से भारत की सेवा की और भारत को एक सूत्र में बांधा। सरदार पटेल ने हमेशा दूसरों के लिए बलिदान दिया।
◆ आधुनिक भारत के निर्माण में सरदार वल्लभभाई पटेल की भूमिका अमूल्य है। और इसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। लौह पुरुष नाम से प्रचलित सरदार पटेल भले ही स्वतंत्रता के बाद 3 साल ही भारत के विकास में अपना योगदान दे पाए लेकिन उतने ही समय में उन्होंने भारत के लिए बहुत कुछ कर दिया।