इस पोस्ट में पढ़िए नदी पर हिंदी कविता (poem on River in Hindi).
the little river poem in hindi
ऊँचे पहाड़ों से,
सकरी चटानी से,
सरपट दौड़ती हुई,
बहती है नदी।
ऊंचे पहाड़ों से भी गिरकर,
सकरी चटटानो से भी फिसल कर,
हार न मानने की सलाह,
हमें दे जाती है नदी।
जंगलो के बीच से,
पहाड़ी को काट कर,
निरंतर बहती,
जाती है नदी।
बाँधाओं से लड़कर,
मुश्किलों को हराकर,
आगे बढते रहने का सबक,
हमे दे जाती है नदी।
ग्रीष्म की तपती हुई गर्मी में,
खुद रहकर भी,
अपने निर्मल, पवित्र, शीतल जल से,
जीवों की प्यास को,
बुझाती है नदी।
खुद संकट में रहकर भी,
दुसरों के हित में सोचना,
ऐसी महान परोपकार की नैतिकता,
हमें सिखा जाती है नदी।
कल कल करती नदी की धारा।
बही जा रही बढ़ी जा रही।
प्रगति पथ पर चढ़ी जा रही।
सबको जल ये दिये जा रही।
पथ न कोई रोक सके।
और न कोई टोक सके।
चट्टानों से टकराती है, तूफानों से भीड़ जाती है।
रूकना इसे कब भाता है।
थकना इसे नहीं आता है।
सोद्देश्य स्व-पथ पर पल पल बस आगे बढ़ती जाती है।
कल -कल करती जल की धारा।
जौहर अपना दिखलाती है।
poem on River in Hindi for class 1, class 2, class 3, class 4, class 5
यदि हमारे बस में होता,
नदी को उठाकर घर ले आते।
अपने घर के ठीक सामने,
उसको हम हर रोज बहाते।
कूद-कूद कर उछल-उछल कर,
हम मित्रों के साथ नहाते।
कभी तैरते कभी डूबते,
इतराते गाते मस्ताते।
‘नदी आई है’ आओ नहाने,
आमंत्रित सबको करवाते।
सभी उपस्थित भद्र जनों का,
नदिया से परिचय करवाते।
यदि हमारे मन में आता
झटपट नदी पार कर जाते
खड़े-खड़े उस पार नदी के
मम्मी मम्मी हम चिल्लाते
शाम ढले फिर नदी उठाकर
अपने कंधे पर रखवाते
लाए जहां से थे हम उसको
जाकर उसे वहीं रख आते
खड़े-खड़े उस पार नदी के
मम्मी मम्मी हम चिल्लाते
शाम ढले फिर नदी उठाकर
अपने कंधे पर रखवाते
लाए जहां से थे हम उसको
जाकर उसे वहीं रख आते
poem on river in hindi for class 6, class 7, class 8
नदी निकलती है पर्वत से,
मैदानों में बहती है।
और अंत में मिल सागर से,
एक कहानी कहती है।
बचपन में छोटी थी पर मैं,
बड़े वेग से बहती थी।
आँधी – तूफान,
बाढ़ – बवंडर,
सब कुछ हँसकर सहती थी।
मैदानों में आकर मैने,
सेवा का संकल्प लिया।
और बना जैसे भी मुझसे,
मानव का उपकार किया।
अंत समय में बचा शेष जो,
सागर को उपहार दिया।
सब कुछ अर्पित करके अपने,
जीवन को साकार किया।
बच्चों शिक्षा लेकर मुझसे,
मेरे जैसे हो जाओ।
सेवा और समर्पण से तुम,
जीवन बगिया महकाओ।
poem on save river in hindi
नदी को बोलने दो,
शब्द स्वरों के खोलने दो।
उसकी नीरव निस्तब्धता,एक खतरे का संकेत है।
यह इस बात की पुष्टि है,
कि नदी हुई समाप्त,
शेष रह गई रेत है।
बहती हुई नदी,
जीवन का प्रमाण है,
राष्ट्र का है गौरव,
जीवंतता की पहचान है।
यह उर्वरता और जीवन प्रदान करती है,
खुद कष्ट सहकर दूसरों का कष्ट हरती है,
यह जीवनदायिनी है,
इसे अपने दुष्कर्मों,से न भयभीत करो,
यह नीर नहीं संचती है,
इसे नाले में न तब्दील करो
तुम्हारे पाप को ढोते-ढोते वह कुछ थक-सी गई है
ऐसा लग रहा है
कि वह कुछ सहम-सिमट सी गई है।
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Hi about poem on river