मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य के ऐसे सूरज है जो आज भी हिंदी साहित्य में आकाश की बुलंदियों पर चमक रहे हैं। उनके द्वारा लिखी गई सभी कहानियां और उपन्यास हमारे जीवन से जुड़े हुए हैं।
ऐसे में मुंशी प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां कौन-कौन सी हैं अगर आप भी इंटरनेट पर इसके बारे में जानकारी सर्च कर रहे हैं तो आप बिल्कुल सही वेबसाइट पर आ गए हैं, क्योंकि आज के आर्टिकल में हम आपको मुंशी प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां की एक श्रृंखला का पूरा विवरण प्रस्तुत करेंगे। इसके माध्यम से आप जान पाएंगे कि मुंशी प्रेमचंद की कौन-कौन सी कहानी है जो उनके द्वारा सर्वश्रेष्ठ तरीके से लिखी गई थी और उनको पढ़ने के बाद आपको जीवन में कुछ ना कुछ सीखने को मिलेगा चलिए जानते हैं हम सब के बारे में –
प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ
यहाँ हिंदी साहित्य के विख्यात लेखक मुंशी प्रेमचंद की कुछ सर्वश्रेष्ठ कहानियों के बारे में बताया जा रहा है। जिन्हें आप नीचे दिए गए बिंदुओं में देख सकते हैं –
- दो बैलों की कथा
- पंच परमेश्वर
- ईदगाह
- ठाकुर का कुआं
- पूस की रात
- बड़े घर की बेटी
- नमक का दरोगा
- कफ़न
- कर्मों का फल
- बूढ़ी काकी
- कायर
- शिकार
- नशा
- स्वामिनी
- सवा सेर गेहुँ
- गुल्ली-डंडा
- दुनिया का सबसे अनमोल रत्न
- मैकू
- दुर्गा का मंदिर
- दो भाई
- जुलूस
- समर-यात्रा
- हार की जीत
- परीक्षा
- सच्चाई का उपहार
- धर्मसंकट
- विषम समस्या
- उपदेश
- मन्त्र
- सेवा-मार्ग
- बंद दरवाजा
- त्रिया-चरित्र
- क़ातिल
- क्रिकेट मैच
- कर्मों का फल
- इस्तीफा
- आत्माराम
मुंशी प्रेमचंद के बारे में
मुंशी जी का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, लेकिन उन्हें साहित्य जगत में नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से जाना जाता है। मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को लमही गांव, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उनके पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो डाकखाने में क्लर्क थे और उनकी माता का नाम आनन्दी देवी था।
मुंशी प्रेमचंद का जीवन काफी संघर्ष और कठिनाइयों के साथ गुजारा है 6 वर्ष की उम्र में उनकी मां का देहांत हो गया था उसके बाद 16 साल की उम्र में उनके पिता की भी मृत्यु हो जाती है। जिसके बाद उन्हें अपना जीवन यापन करने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
मुंशी प्रेमचंद ने अपनी शिक्षा अपने गांव लमही से शुरू किया था। 1898 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद अपनी पढ़ाई आगे जारी रखने के लिए उन्होंने स्थानीय विद्यालय में शिक्षक का काम करना शुरू किया। सन् 1919 में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। 1921 में महात्मा गांधी के द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में मुंशी प्रेमचंद ने सहयोग करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी थी। उस दौरान उन्होंने कई साहित्य रचनाएं भी की थी। लंबी बीमारी के बाद उनका 08 अक्टूबर 1936 को निधन हो गया। बता दें कि हर वर्ष 8 अक्टूबर को मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि मनाई जाती है।
निष्कर्ष : उम्मीद करता हूं कि हमारे द्वारा लिखा गया आर्टिकल आपको पसंद आएगा ऐसे में आर्टिकल से जुड़ा कोई भी आपका सवाल या प्रश्न है तो आप हमारे कमेंट सेक्शन में जाकर पूछ सकते हैं उसका उत्तर हम आपको जरूर देंगे तब तक के लिए धन्यवाद और मिलते हैं अगले आर्टिकल में।