लिव-इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चे जायज़ है? 

आजकल आपने “लिव-इन रिलेशनशिप” का नाम तो सुना ही होगा। ये पश्चिमी देशों से आया ट्रेंड है, जो अब भारत में भी खूब चल रहा है। कई युवा बिना शादी के एक छत के नीचे पति-पत्नी की तरह रहते हैं। लेकिन सवाल ये है कि भारत में ऐसे रिश्तों का कानूनी स्टेटस क्या है? खासकर जब बात बच्चों की आती है, तो लोग सोच में पड़ जाते हैं—लिव-इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चे जायज़ हैं या नाजायज़? हमारे देश में अभी इस बारे में कोई साफ कानून नहीं है, फिर भी कोर्ट ने कुछ बातें साफ की हैं। अगर आप भी ये जानना चाहते हैं कि ऐसे बच्चे कानून और समाज की नज़र में कहाँ खड़े हैं, तो ये आर्टिकल आपके लिए है। चलिए, शुरू करते हैं!

लिव-इन रिलेशनशिप के लिए क्या शर्तें हैं?

भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को कोर्ट ने मान्यता दी है, लेकिन इसके लिए कुछ शर्तें तय की हैं। ये शर्तें पूरी हों, तभी इसे कानूनी तौर पर सही माना जाता है। देखिए क्या हैं वो:

  • दोनों पार्टनर की उम्र 18 साल से ज़्यादा होनी चाहिए। नाबालिग हों, तो बात बिगड़ सकती है।
  • दोनों को एक-दूसरे को पति-पत्नी की तरह मानना होगा—यानी समाज में वैसा ही बर्ताव करना, जैसा शादीशुदा जोड़े करते हैं।
  • रिश्ता टिकाऊ होना चाहिए। मतलब, दो-चार महीने साथ रहकर अलग हो गए, तो वो लिव-इन नहीं माना जाएगा।

लिव-इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चे जायज़ हैं या नहीं?

अब आते हैं असली सवाल पर। कोर्ट ने साफ कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चे कानून की नज़र में जायज़ हैं। यानी इन्हें “नाजायज़” का टैग नहीं लगाया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार ऐसे बच्चों को पूरा हक देने की बात कही है। चलिए, देखते हैं इन बच्चों को क्या-क्या अधिकार मिलते हैं:

  • कानूनी मान्यता: लिव-इन से पैदा हुए बच्चे पूरी तरह लीगल हैं। कोर्ट इन्हें वैध संतान मानता है, बशर्ते माँ-बाप का रिश्ता शर्तों के मुताबिक हो।
  • प्रॉपर्टी का हक: ऐसे बच्चे अपने माता-पिता की संपत्ति में बराबर के हकदार हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में “वेल्लियप्पा चेट्टियार” केस में ये साफ किया था कि लिव-इन के बच्चों को भी वारिस माना जाएगा।
  • देखभाल का अधिकार: बच्चे को माँ और बाप, दोनों से गुज़ारा भत्ता (maintenance) लेने का हक है, भले ही शादी न हुई हो।

हालाँकि, एक बात ध्यान रखें—अगर माँ-बाप का रिश्ता कोर्ट की शर्तों पर खरा नहीं उतरता, जैसे कि बहुत छोटी अवधि का हो या एक पार्टनर पहले से शादीशुदा हो, तो बच्चे का स्टेटस तय करने में पेचीदगी हो सकती है। लेकिन आम तौर पर, कानून ऐसे बच्चों के हक को बचाता है।

समाज क्या सोचता है?

कानून ने भले ही इन्हें जायज़ माना हो, लेकिन हमारे समाज में अभी भी पुरानी सोच बाकी है। कई लोग लिव-इन को गलत मानते हैं और ऐसे बच्चों को “नाजायज़” कहकर ताने मारते हैं। पर सच ये है कि कानून समाज की सोच से ऊपर है। अगर माँ-बाप अपने बच्चे को अपनाते हैं, तो समाज की बातों से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। धीरे-धीरे ये सोच भी बदल रही है, खासकर शहरों में।

आखिरी बात

तो दोस्तों, लिव-इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चे कानून की नज़र में बिल्कुल जायज़ हैं और उन्हें सारे हक मिलते हैं—चाहे वो प्रॉपर्टी हो या देखभाल। हाँ, समाज को थोड़ा वक्त लगेगा इसे पूरी तरह अपनाने में, लेकिन कानून आपके साथ है। मुझे उम्मीद है कि ये बातें आपके सवालों का जवाब दे पाईं। अगर कुछ और पूछना हो, तो कमेंट में लिखें—मैं ज़रूर जवाब दूंगा। तब तक के लिए, अलविदा और अगले आर्टिकल में मिलते हैं!

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