गीता छठवाँ अध्याय अर्थ सहित Bhagavad Gita Chapter – 6 with Hindi and English Translation

गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – २४

संकल्पप्रभवान् कामांस् त्यक्त्वा सर्वानशेषतः।
मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः॥६-२४॥

-: हिंदी भावार्थ :-

संकल्प से उत्पन्न होने वाली सभी कामनाओं को पूरी तरह से छोड़ कर, मन द्वारा इन्द्रिय समूह को सम्यक् प्रकार से रोककर॥24॥

-: English Meaning :-

Abandoning without reserve all fancy-born desire, well-restraining all the senses from all quarters by the mind;॥24॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – २५

शनैः शनैरुपरमेद्‌ बुद्ध्या धृतिगृहीतया।
आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किंचिदपि चिन्तयेत्॥६-२५॥

-: हिंदी भावार्थ :-

धीरे-धीरे बुद्धि को शांत करते हुए, धैर्य पूर्वक मन को आत्मा में स्थित करते हुए कुछ भी विचार न करे॥25॥

-: English Meaning :-

Little by little let him withdraw, by reason (buddhi) held in firmness; keeping the mind established in the Self, let him not think of anything.॥25॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – २६

यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्।
ततस्ततो नियम्यैतदा त्मन्येव वशं नयेत्॥६-२६॥

-: हिंदी भावार्थ :-

स्थिर न रहने वाला, यह चंचल मन जिस-जिस शब्दादि विषय में विचरता है, उस-उस विषय से इसे हटाकर बार-बार आत्मा में ही स्थित करे॥26॥

-: English Meaning :-

By whatever cause the wavering and unsteady mind wanders away, from that let him restrain it and bring it back direct under the control of the Self.॥26॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – २७

प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम्।
उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम्॥६-२७॥

-: हिंदी भावार्थ :-

क्योंकि जिसका मन सम्यक् रूप से शांत है, जो पाप से रहित है और जिसका रजोगुण शांत हो गया है, ऐसा योगी ब्रह्म के साथ एकत्व अनुभव कर उत्तम आनंद को प्राप्त होता है॥27॥

-: English Meaning :-

Supreme Bliss verily comes to this Yogin, whose mind is quite tranquil, whose passion is quieted, who has become Brahman, who is blemish-less.॥27॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – २८

युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मषः।
सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शम त्यन्तं सुखमश्नुते॥६-२८॥

-: हिंदी भावार्थ :-

वह निष्पाप योगी इस प्रकार मन को निरंतर आत्मा में लगाते हुए सुख से परब्रह्म की अनुभूति करते हुए अति आनंद प्राप्त करता है॥28॥

-: English Meaning :-

Thus always keeping the self steadfast, the Yogin, freed from sins, attains with ease to the infinite bliss of contact with the (Supreme) Brahman.॥28॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – २९

सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः॥६-२९॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सर्वत्र समान भाव वाला और योग से युक्त आत्मा वाला योगी आत्मा को सभी भूतों में स्थित और सभी भूतों को आत्मा में (अर्थात् अत्यंत अभेद) देखता है ॥29॥

-: English Meaning :-

The Self abiding in all beings and all beings (abiding) in the Self, sees he whose self has been made steadfast by Yoga, who everywhere sees the same.॥29॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ३०

यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥६-३०॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जो पुरुष सभी भूतों में मुझे (वासुदेव को) व्यापक देखता है और सभी भूतों को मुझमें देखता है, उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिए अदृश्य नहीं होता॥30॥

-: English Meaning :-

He who sees Me everywhere and sees everything in Me, to him I vanish not, nor to me does he vanish.॥30॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ३१

सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः।
सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते॥६-३१॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जो पुरुष एकत्व में स्थित होकर सभी भूतों में (आत्मरूप) से स्थित मुझ (वासुदेव) को भजता है, वह योगी सब प्रकार से कर्म करता हुआ भी मुझमें ही विद्यमान है॥31॥

-: English Meaning :-

Whoso, intent on unity, worships Me who abide in all beings, that Yogin dwells in Me, whatever his mode of life.॥31॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ३२

आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन ।
सुखं वा यदि वा दुःखं स योगी परमो मतः ॥६-३२॥

-: हिंदी भावार्थ :-

हे अर्जुन! जो योगी अपनी आत्मा जैसे सभी भूतों को समान देखता है और सुख या दुःख को भी सभी भूतों में समान देखता है, वह योगी परम श्रेष्ठ माना गया है॥32॥

-: English Meaning :-

Whoso, by comparison with himself, sees the same everywhere, O Arjuna, be it pleasure or pain, he is deemed the highest Yogin.॥32॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ३३

अर्जुन उवाच
योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन।
एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम्॥६-३३॥

-: हिंदी भावार्थ :-

अर्जुन कहते हैं – हे मधुसूदन! जो यह योग आपने सम भाव से कहा, मन के चंचल होने से मैं इसकी नित्य स्थिति को नहीं देखता हूँ॥33॥

-: English Meaning :-

Arjun says – This Yoga in equanimity, taught by Thee, O Destroyer of Madhu – I see not its steady continuance, because of the restlessness (of the mind).॥33॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ३४

चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्‌दृढम्।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्॥६-३४॥

-: हिंदी भावार्थ :-

क्योंकि हे श्रीकृष्ण! यह मन बड़ा चंचल, क्षोभ युक्त स्वभाव वाला, बड़ा दृढ़ और बलवान है; इसलिए उसका वश में करना मैं वायु को रोकने की भाँति अत्यन्त कठिन मानता हूँ॥34॥

-: English Meaning :-

The mind verily, is, O Krishna, restless, turbulent, strong and obstinate. Thereof the restraint I deem quite as difficult as that of the wind.॥34॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ३५

श्रीभगवानुवाच असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् ।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥६-३५॥

-: हिंदी भावार्थ :-

श्री भगवान कहते हैं – हे महाबाहो! निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है परन्तु हे कुंतीपुत्र अर्जुन! यह अभ्यास और वैराग्य से वश में होता है॥35॥

-: English Meaning :-

The Lord says – Doubtless, O mighty-armed, the mind is hard to restrain and restless; but by practice, O son of Kunti and by indifference it may be restrained.॥35॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ३६

असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः।
वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः॥६-३६॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जिसका मन वश में किया हुआ नहीं है, ऐसे पुरुष द्वारा योग प्राप्त होना कठिन है और वश में किए हुए मन वाले प्रयत्नशील पुरुष द्वारा उसका प्राप्त होना सहज है- यह मेरा मत है॥36॥

-: English Meaning :-

Yoga, me thinks is hard to attain for a man of uncontrolled self; but by him who (often) strives, self-controlled, it can be acquired by (proper) means.
॥36॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ३७

अर्जुन उवाच
अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः।
अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति॥६-३७॥

-: हिंदी भावार्थ :-

अर्जुन कहते हैं – हे श्रीकृष्ण! जो योग में श्रद्धा रखने वाला है, किन्तु उसके अभ्यास से रहित है, इस कारण योग से विचलित मन वाला साधक योग की सिद्धि को न प्राप्त होकर किस गति को प्राप्त होता है?॥37॥

-: English Meaning :-

Arjun says – He who strives not, but who is possessed of faith, whose mind wanders away from Yoga – having failed to attain perfection in Yoga, what end, O Krishna, does he meet?॥37॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ३८

कच्चिन्नोभयविभ्रष्ट श्छिन्नाभ्रमिव नश्यति।
अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मणः पथि॥६-३८॥

-: हिंदी भावार्थ :-

हे महाबाहो! भगवत्प्राप्ति के मार्ग में मोह वाला वह आश्रयरहित पुरुष कहीं छिन्न-भिन्न बादल की भाँति दोनों ओर से भ्रष्ट होकर नष्ट तो नहीं हो जाता?॥38॥

-: English Meaning :-

Having failed in both, does he not perish like a raven cloud, supportless, O mighty-armed and perplexed in the path to Brahman?॥38॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ३९

एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषतः।
त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते॥६-३९॥

-: हिंदी भावार्थ :-

हे श्रीकृष्ण! मेरे इस संशय को पूरी तरह से दूर करने में आप योग्य हैं क्योंकि आपके अतिरिक्त दूसरा कोई इस संशय को दूर करने में समर्थ नहीं है॥39॥

-: English Meaning :-

This doubt of mine, O Krishna, do Thou dispel completely; for none other than Thyself can possibly destroy this doubt.॥39॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ४०

श्रीभगवानुवाच पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते।
न हि कल्याणकृत्कश्चिद्‌ दुर्गतिं तात गच्छति॥६-४०॥

-: हिंदी भावार्थ :-

श्री भगवान कहते हैं – हे पार्थ! उस पुरुष का न तो इस लोक में नाश होता है और न परलोक में ही। क्योंकि हे प्रिय! आत्मोद्धार के लिए कर्म करने वाला कोई भी मनुष्य दुर्गति को प्राप्त नहीं होता॥40॥

-: English Meaning :-

The Lord says – O Partha!, neither in this world nor in the next is there destruction for him; none, verily, who does good, My son, ever comes to grief.॥40॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ४१

प्राप्य पुण्यकृतां लोकानु षित्वा शाश्वतीः समाः।
शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते॥६-४१॥

-: हिंदी भावार्थ :-

योगभ्रष्ट पुरुष पुण्यवानों के लोकों को प्राप्त होकर, उनमें बहुत वर्षों तक निवास करके फिर शुद्ध आचरण वाले श्रीमान पुरुषों के घर में जन्म लेता है॥41॥

-: English Meaning :-

Having attained to the worlds of the righteous and having dwelt there for eternal years, he who failed in Yoga is reborn in a house of the pure and wealthy. ॥41॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ४२

अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम्।
एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम्॥६-४२॥

-: हिंदी भावार्थ :-

अथवा वैराग्यवान पुरुष उन लोकों में न जाकर योगियों के ही कुल में जन्म लेता है, परन्तु इस प्रकार का जन्म संसार में निःसंदेह अत्यन्त दुर्लभ है॥42॥

-: English Meaning :-

Else, he is born in family of wise Yogins only. This, verily, a birth like this, is very hard to obtain in this world.॥42॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ४३

तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम्।
यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन॥६-४३॥

-: हिंदी भावार्थ :-

वहाँ उस पहले शरीर में अर्जित की हुई बुद्धि के योग को अनायास ही प्राप्त हो जाता है और हे कुरुनन्दन! उसके प्रभाव से वह सिद्धि के लिए पहले से भी बढ़कर प्रयत्न करता है॥43॥

-: English Meaning :-

There he easily regains touch with the knowledge, acquired in the former body through some coincidence and strives more than before for perfection, O son of the Kuru!.॥43॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ४४

पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः।
जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते॥६-४४॥

-: हिंदी भावार्थ :-

वह (योगभ्रष्ट) पराधीन हुआ सा उस पहले के अभ्यास से ही निःसंदेह योग की ओर आकर्षित किया जाता है। (समबुद्धि रूपी) योग का जिज्ञासु भी वेद में कहे हुए कर्मों के फल को पार कर जाता है॥44॥

-: English Meaning :-

By that very former practice he is indeed attracted to Yoga, though unwilling. Even he who merely wishes to know of Yoga raises superior to the Word-Brahman.॥44॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ४५

प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः।
अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम्॥६-४५॥

-: हिंदी भावार्थ :-

प्रयत्नपूर्वक अभ्यास करने वाला योगी पिछले अनेक जन्मों के संस्कारों से इसी जन्म में संसिद्ध हो, सभी पापों से रहित होकर शीघ्र ही परमगति को प्राप्त हो जाता है॥45॥

-: English Meaning :-

Verily, a Yogin who strives with assiduity, purified from sins and perfected in the course of many births, then reaches the Supreme Goal.॥45॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ४६

तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः।
कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन॥६-४६॥

-: हिंदी भावार्थ :-

योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ है, शास्त्रज्ञानियों से भी श्रेष्ठ माना गया है और (सकाम) कर्म करने वालों से भी योगी श्रेष्ठ है; इसलिए हे अर्जुन! तुम योगी हो जाओ॥46॥

-: English Meaning :-

A Yogi is superior to men of austerity and he is considered superior to even men of knowledge; he is also superior to men of action; therefore O Arjun! you become a Yogi.॥46॥


गीता छठवाँ अध्याय श्लोक – ४७

योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना।
श्रद्धावान् भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः॥६-४७॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सभी योगियों में भी जो श्रद्धावान योगी मुझमें लगे हुए अन्तरात्मा से मुझको निरन्तर भजता है, वह योगी मुझे श्रेष्ठतम मान्य है॥47॥

-: English Meaning :-

Of all Yogis, whoso, full of reverence, worships Me with his inner self abiding in Me, he is accepted by Me as the most befitting.॥47॥


गीता छठवाँ अध्याय समाप्त

ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे आत्मसंयमयोगो नाम षष्ठोऽध्यायः॥ ६॥

-: हिंदी भावार्थ :-

ॐ तत् सत् ! इस प्रकार ब्रह्मविद्या का योग करवाने वाले शास्त्र, श्रीमद्भगवद्गीता रूपी उपनिषत् में श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद रूपी आत्म-संयम योग नाम वाला छठा अध्याय सम्पूर्ण हुआ॥

-: English Meaning :-

Om That is Truth! This completes the sixth chapter of Srimadbhagwad Gita, an Upanishat to unify one with Lord. This sixth chapter depicts the conversation between Sri Krishna and Arjun, and is named as “Yoga of Self Control”.


. गीता सातवाँ अध्याय अर्थ सहित

3 thoughts on “गीता छठवाँ अध्याय अर्थ सहित Bhagavad Gita Chapter – 6 with Hindi and English Translation”

  1. Good work, nicely translated in Hindi and English both. Very easy to understand and to grasp the very intention of the Lord in saying the knowledge to great archer Arjun in the battle field and to all people on the planet.

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