गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान्पृथग्विधान् ।
वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञानं विद्धि राजसम् ॥१८-२१॥
-: हिंदी भावार्थ :-
किन्तु जो ज्ञान अर्थात जिस ज्ञान के द्वारा मनुष्य सम्पूर्ण भूतों में भिन्न-भिन्न प्रकार के नाना भावों को अलग-अलग जानता है, उस ज्ञान को तू राजस जान॥21॥
-: English Meaning :-
But that knowledge which by differentiation, sees in all the creatures various entities of distinct kinds, that knowledge know thou as Rajasic.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
यत्तु कृत्स्नवदेकस्मिन् कार्ये सक्तमहैतुकम् ।
अतत्त्वार्थवदल्पं च तत्तामसमुदाहृतम् ॥१८-२२॥
-: हिंदी भावार्थ :-
परन्तु जो ज्ञान एक कार्यरूप शरीर में ही सम्पूर्ण के सदृश आसक्त है तथा जो बिना युक्तिवाला, तात्त्विक अर्थ से रहित और तुच्छ है- वह तामस कहा गया है॥22॥
-: English Meaning :-
But that which clings to one single effect as if it were all, without reason, having no real object and narrow, that is declared to be Tamasic.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
नियतं सङ्गरहितम रागद्वेषतः कृतम् ।
अफलप्रेप्सुना कर्म यत्तत्सात्त्विकमुच्यते ॥१८-२३॥
-: हिंदी भावार्थ :-
जो कर्म शास्त्रविधि से नियत किया हुआ और कर्तापन के अभिमान से रहित हो तथा फल न चाहने वाले पुरुष द्वारा बिना राग-द्वेष के किया गया हो- वह सात्त्विक कहा जाता है॥23॥
-: English Meaning :-
An action which is ordained, which is free from attachment, which is done without love or hatred by one not desirous of the fruit, that action is declared to be Sattvic.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
यत्तु कामेप्सुना कर्म साहंकारेण वा पुनः ।
क्रियते बहुलायासं तद्राजसमुदाहृतम् ॥१८-२४॥
-: हिंदी भावार्थ :-
परन्तु जो कर्म बहुत परिश्रम से युक्त होता है तथा भोगों को चाहने वाले पुरुष द्वारा या अहंकारयुक्त पुरुष द्वारा किया जाता है, वह कर्म राजस कहा गया है॥24॥
-: English Meaning :-
But the action which is done by one longing for pleasures, or done by the egotistic, costing much trouble, that is declared to be Rajasic.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
अनुबन्धं क्षयं हिंसा मनवेक्ष्य च पौरुषम् ।
मोहादारभ्यते कर्म यत्तत्तामसमुच्यते ॥१८-२५॥
-: हिंदी भावार्थ :-
जो कर्म परिणाम, हानि, हिंसा और सामर्थ्य को न विचारकर केवल अज्ञान से आरंभ किया जाता है, वह तामस कहा जाता है॥25॥
-: English Meaning :-
The action which is undertaken from delusion, without regarding the consequence, loss, injury and ability, that is declared to be Tamasic.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः ।
सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥१८-२६॥
-: हिंदी भावार्थ :-
जो कर्ता संगरहित, अहंकार के वचन न बोलने वाला, धैर्य और उत्साह से युक्त तथा कार्य के सिद्ध होने और न होने में हर्ष -शोकादि विकारों से रहित है- वह सात्त्विक कहा जाता है॥26॥
-: English Meaning :-
Free from attachment, not given to egotism, endued with firmness and vigor, unaffected in success and failure, an agent is said to be Sattvic.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
रागी कर्मफलप्रेप्सुर्लुब्धो हिंसात्मकोऽशुचिः ।
हर्षशोकान्वितः कर्ता राजसः परिकीर्तितः ॥१८-२७॥
-: हिंदी भावार्थ :-
जो कर्ता आसक्ति से युक्त कर्मों के फल को चाहने वाला और लोभी है तथा दूसरों को कष्ट देने के स्वभाववाला, अशुद्धाचारी और हर्ष-शोक से लिप्त है वह राजस कहा गया है॥27॥
-: English Meaning :-
Passionate, desiring to attain the fruit of action, greedy, cruel, impure, subject to joy and sorrow, such an agent is said to be Rajasic.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
अयुक्तः प्राकृतः स्तब्धः शठो नैष्कृतिकोऽलसः ।
विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते ॥१८-२८॥
-: हिंदी भावार्थ :-
जो कर्ता अयुक्त, शिक्षा से रहित घमंडी, धूर्त और दूसरों की जीविका का नाश करने वाला तथा शोक करने वाला, आलसी और दीर्घसूत्री (दीर्घसूत्री उसको कहा जाता है कि जो थोड़े काल में होने लायक साधारण कार्य को भी फिर कर लेंगे, ऐसी आशा से बहुत काल तक नहीं पूरा करता। ) है वह तामस कहा जाता है॥28॥
-: English Meaning :-
Unsteady, vulgar, unbending, deceptive, wicked, indolent, desponding and procrastinating, (such) an agent is said to be Tamasic.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
बुद्धेर्भेदं धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविधं शृणु ।
प्रोच्यमानमशेषेण पृथक्त्वेन धनंजय ॥१८-२९॥
-: हिंदी भावार्थ :-
हे धनंजय ! अब तू बुद्धि का और धृति का भी गुणों के अनुसार तीन प्रकार का भेद मेरे द्वारा सम्पूर्णता से विभागपूर्वक कहा जाने वाला सुन॥29॥
-: English Meaning :-
The threefold division of intellect and firmness according to qualities, about to be taught fully and distinctively (by Me), hear thou, O Dhananjaya.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये ।
बन्धं मोक्षं च या वेत्ति बुद्धिः सा पार्थ सात्त्विकी ॥१८-३०॥
-: हिंदी भावार्थ :-
हे पार्थ ! जो बुद्धि प्रवृत्तिमार्ग और निवृत्ति मार्ग को, कर्तव्य और अकर्तव्य को, भय और अभय को तथा बंधन और मोक्ष को यथार्थ जानती है- वह बुद्धि सात्त्विकी है ॥30॥
-: English Meaning :-
That which knows action and inaction, what ought to be done and what ought not to be done, fear and absence of fear, bondage and liberation, that intellect is Sattvic, O Partha.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
यया धर्ममधर्मं च कार्यं चाकार्यमेव च ।
अयथावत्प्रजानाति बुद्धिः सा पार्थ राजसी ॥१८-३१॥
-: हिंदी भावार्थ :-
हे पार्थ! मनुष्य जिस बुद्धि के द्वारा धर्म और अधर्म को तथा कर्तव्य और अकर्तव्य को भी यथार्थ नहीं जानता, वह बुद्धि राजसी है॥31॥
-: English Meaning :-
That by which one wrongly understands Dharma and Adharma and also what ought to be done and what ought not to be done, that intellect, O Partha, is Rajasic.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
अधर्मं धर्ममिति या मन्यते तमसावृता ।
सर्वार्थान्विपरीतांश्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी ॥१८-३२॥
-: हिंदी भावार्थ :-
हे अर्जुन! जो तमोगुण से घिरी हुई बुद्धि अधर्म को भी ‘यह धर्म है’ ऐसा मान लेती है तथा इसी प्रकार अन्य संपूर्ण पदार्थों को भी विपरीत मान लेती है, वह बुद्धि तामसी है॥32॥
-: English Meaning :-
That which, enveloped in darkness, sees Adharma as Dharma and all things perverted, that intellect, O Partha, is Tamasic.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
धृत्या यया धारयते मनःप्राणेन्द्रियक्रियाः।
योगेनाव्यभिचारिण्या धृतिः सा पार्थ सात्त्विकी ॥१८-३३॥
-: हिंदी भावार्थ :-
हे पार्थ! जिस अव्यभिचारिणी धारण शक्ति (भगवद्विषय के सिवाय अन्य सांसारिक विषयों को धारण करना ही व्यभिचार दोष है, उस दोष से जो रहित है वह ‘अव्यभिचारिणी धारणा’ है।) से मनुष्य ध्यान योग के द्वारा मन, प्राण और इंद्रियों की क्रियाओं ( मन, प्राण और इंद्रियों को भगवत्प्राप्ति के लिए भजन, ध्यान और निष्काम कर्मों में लगाने का नाम ‘उनकी क्रियाओं को धारण करना’ है।) को धारण करता है, वह धृति सात्त्विकी है॥33॥
-: English Meaning :-
The firmness which is ever accompanied by Yoga and by which the activities of thought, of life-breaths and sense-organs, O Partha, are held fast, such a firmness is Sattvic.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
यया तु धर्मकामार्थान्धृत्या धारयतेऽर्जुन ।
प्रसङ्गेन फलाकाङ्क्षी धृतिः सा पार्थ राजसी ॥१८-३४॥
-: हिंदी भावार्थ :-
परंतु हे पृथापुत्र अर्जुन! फल की इच्छावाला मनुष्य जिस धारण शक्ति के द्वारा अत्यंत आसक्ति से धर्म, अर्थ और कामों को धारण करता है, वह धारण शक्ति राजसी है॥34॥
-: English Meaning :-
But the firmness with which one holds fast to Dharma and pleasures and wealth, desirous of the fruit of each on its occasion, that firmness, O Partha, is Rajasic.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
यया स्वप्नं भयं शोकं विषादं मदमेव च ।
न विमुञ्चति दुर्मेधा धृतिः सा पार्थ तामसी ॥१८-३५॥
-: हिंदी भावार्थ :-
हे पार्थ! दुष्ट बुद्धिवाला मनुष्य जिस धारण शक्ति के द्वारा निद्रा, भय, चिंता और दु:ख को तथा उन्मत्तता को भी नहीं छोड़ता अर्थात धारण किए रहता है- वह धारण शक्ति तामसी है॥35॥
-: English Meaning :-
That with which a stupid man does not give up sleep, fear, grief, depression and lust, that firmness, O Partha, is Tamasic.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
सुखं त्विदानीं त्रिविधं शृणु मे भरतर्षभ ।
अभ्यासाद्रमते यत्र दुःखान्तं च निगच्छति ॥१८-३६॥
-: हिंदी भावार्थ :-
हे भरतश्रेष्ठ! अब तीन प्रकार के सुख को भी तू मुझसे सुन। जिस सुख में साधक मनुष्य भजन, ध्यान और सेवादि के अभ्यास से रमण करता है और जिससे दुःखों के अंत को प्राप्त हो जाता है, जो ऐसा सुख है, वह आरंभकाल में यद्यपि विष के तुल्य प्रतीत (जैसे खेल में आसक्ति वाले बालक को विद्या का अभ्यास मूढ़ता के कारण प्रथम विष के तुल्य भासता है वैसे ही विषयों में आसक्ति वाले पुरुष को भगवद्भजन, ध्यान, सेवा आदि साधनाओं का अभ्यास मर्म न जानने के कारण प्रथम ‘विष के तुल्य प्रतीत होता’ है) होता है, परन्तु परिणाम में अमृत के तुल्य है, इसलिए वह परमात्मविषयक बुद्धि के प्रसाद से उत्पन्न होने वाला सुख सात्त्विक कहा गया है॥36-37॥
-: English Meaning :-
And now hear from Me – O lord of the Bharatas – of the threefold pleasure, in which one delights by practice and surely comes to the end of pain.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
यत्तदग्रे विषमिव परिणामेऽमृतोपमम् ।
तत्सुखं सात्त्विकं प्रोक्तमात्मबुद्धिप्रसादजम् ॥१८-३७॥
-: हिंदी भावार्थ :-
-: English Meaning :-
That which is like poison at first, at the end, like nectar that pleasure is declared to be Sattvic, born of the purity of one’s own mind.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
विषयेन्द्रियसंयोगाद्यत्त दग्रेऽमृतोपमम् ।
परिणामे विषमिव तत्सुखं राजसं स्मृतम् ॥१८-३८॥
-: हिंदी भावार्थ :-
जो सुख विषय और इंद्रियों के संयोग से होता है, वह पहले- भोगकाल में अमृत के तुल्य प्रतीत होने पर भी परिणाम में विष के तुल्य (बल, वीर्य, बुद्धि, धन, उत्साह और परलोक का नाश होने से विषय और इंद्रियों के संयोग से होने वाले सुख को ‘परिणाम में विष के तुल्य’ कहा है) है इसलिए वह सुख राजस कहा गया है॥38॥
-: English Meaning :-
That pleasure which arises from the contact of the sense-organ with the object, at first like nectar, in the end like poison that is declared to be Rajasic.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
यदग्रे चानुबन्धे च सुखं मोहनमात्मनः ।
निद्रालस्यप्रमादोत्थं तत्तामसमुदाहृतम् ॥१८-३९॥
-: हिंदी भावार्थ :-
जो सुख भोगकाल में तथा परिणाम में भी आत्मा को मोहित करने वाला है, वह निद्रा, आलस्य और प्रमाद से उत्पन्न सुख तामस कहा गया है॥39॥
-: English Meaning :-
The pleasure which at first and in the sequel is delusive of the self, arising from sleep, indolence and heedlessness, that pleasure is declared to be Tamasic.
गीता अठारहवाँ अध्याय श्लोक –
न तदस्ति पृथिव्यां वा दिवि देवेषु वा पुनः ।
सत्त्वं प्रकृतिजैर्मुक्तं यदेभिः स्यात्त्रिभिर्गुणैः ॥१८-४०॥
-: हिंदी भावार्थ :-
पृथ्वी में या आकाश में अथवा देवताओं में तथा इनके सिवा और कहीं भी ऐसा कोई भी सत्त्व नहीं है, जो प्रकृति से उत्पन्न इन तीनों गुणों से रहित हो॥40॥
-: English Meaning :-
There is no being on earth, or again in heaven among the Devas, that can be free from these three gunas born of Prakriti.
Excellent interpretation. Thank for your contributions.