गीता चौदहवाँ अध्याय अर्थ सहित Bhagavad Gita Chapter – 14 with Hindi and English Translation

गीता चौदहवाँ अध्याय श्लोक –

रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते ।
तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते ॥१४-१५॥

-: हिंदी भावार्थ :-

रजोगुण के बढ़ने पर मृत्यु को प्राप्त होकर कर्मों की आसक्ति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है तथा तमोगुण के बढ़ने पर मरा हुआ मनुष्य कीट, पशु आदि मूढ़योनियों में उत्पन्न होता है॥15॥

-: English Meaning :-

Meeting death in Rajas, he is born among those attached to action; and dying in Tamas, he is born in the wombs of the irrational.


गीता चौदहवाँ अध्याय श्लोक –

कर्मणः सुकृतस्याहुः सात्त्विकं निर्मलं फलम् ।
रजसस्तु फलं दुःखम ज्ञानं तमसः फलम् ॥१४-१६॥

-: हिंदी भावार्थ :-

श्रेष्ठ कर्म का तो सात्त्विक अर्थात् सुख, ज्ञान और वैराग्यादि निर्मल फल कहा है, राजस कर्म का फल दुःख एवं तामस कर्म का फल अज्ञान कहा है॥16॥

-: English Meaning :-

The fruit of good action, they say, is Sattvic and pure; while the fruit of rajas is pain and ignorance is the fruit of tamas.


गीता चौदहवाँ अध्याय श्लोक –

सत्त्वात्संजायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च ।
प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च ॥१४-१७॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सत्त्वगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है और रजोगुण से निःसन्देह लोभ तथा तमोगुण से प्रमाद और मोह उत्पन्न होते हैं और अज्ञान भी होता है॥17॥

-: English Meaning :-

From Sattva arises wisdom and greed from Rajas; heedlessness and error arise from Tamas and also ignorance.


गीता चौदहवाँ अध्याय श्लोक –

ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः ।
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः ॥१४-१८॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सत्त्वगुण में स्थित पुरुष स्वर्गादि उच्च लोकों को जाते हैं, रजोगुण में स्थित राजस पुरुष मध्य में अर्थात मनुष्य लोक में ही रहते हैं और तमोगुण के कार्यरूप निद्रा, प्रमाद और आलस्यादि में स्थित तामस पुरुष अधोगति को अर्थात कीट, पशु आदि नीच योनियों को तथा नरकों को प्राप्त होते हैं॥18॥

-: English Meaning :-

Those who follow Sattva go upwards; the Rajasic remain in the middle; and the Tamasic, who follow in the course of the lowest guna, go downwards.


गीता चौदहवाँ अध्याय श्लोक –

नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति ।
गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति ॥१४-१९॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जिस समय दृष्टा तीनों गुणों के अतिरिक्त अन्य किसी को कर्ता नहीं देखता और तीनों गुणों से अत्यन्त परे सच्चिदानन्दघनस्वरूप मुझ परमात्मा को तत्त्व से जानता है, उस समय वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है॥19॥

-: English Meaning :-

When the seer beholds not an agent other than the gunas and knows Him who is higher than the gunas, he attains to My being.


गीता चौदहवाँ अध्याय श्लोक –

गुणानेतानतीत्य त्रीन् देही देहसमुद्भवान् ।
जन्ममृत्युजरादुःखै र्विमुक्तोऽमृतमश्नुते ॥१४-२०॥

-: हिंदी भावार्थ :-

यह पुरुष शरीर की (बुद्धि, अहंकार और मन तथा पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, पाँच भूत, पाँच इन्द्रियों के विषय- इस प्रकार इन तेईस तत्त्वों का पिण्ड रूप यह स्थूल शरीर प्रकृति से उत्पन्न होने वाले गुणों का ही कार्य है, इसलिए इन तीनों गुणों को इसी की उत्पत्ति का कारण कहा है) उत्पत्ति के कारणरूप इन तीनों गुणों को उल्लंघन करके जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और सब प्रकार के दुःखों से मुक्त हुआ परमानन्द को प्राप्त होता है॥20॥

-: English Meaning :-

Having crossed beyond these three gunas, which are the source of the body, the embodied one is freed from birth, death, decay and pain and attains the immortal.


गीता चौदहवाँ अध्याय श्लोक –

अर्जुन उवाच
कैर्लिङ्गैस्त्रीन्गुणाने तानतीतो भवति प्रभो ।
किमाचारः कथं चैतांस्त्रीन् गुणानतिवर्तते ॥१४-२१॥

-: हिंदी भावार्थ :-

अर्जुन बोले- इन तीनों गुणों से अतीत पुरुष किन-किन लक्षणों से युक्त होता है और किस प्रकार के आचरणों वाला होता है तथा हे प्रभो! मनुष्य किस उपाय से इन तीनों गुणों से अतीत होता है?॥21॥

-: English Meaning :-

Arjun says – By what marks, O Lord, is he known who has crossed beyond those three gunas? What is his conduct and how does he pass beyond those three gunas.


गीता चौदहवाँ अध्याय श्लोक –

श्रीभगवानुवाच प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव ।
न द्वेष्टि संप्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति ॥१४-२२॥

-: हिंदी भावार्थ :-

श्री भगवान बोले- हे अर्जुन! जो पुरुष सत्त्वगुण के कार्यरूप प्रकाश (अन्तःकरण और इन्द्रियादि को आलस्य का अभाव होकर जो एक प्रकार की चेतनता होती है, उसका नाम ‘प्रकाश’ है) को और रजोगुण के कार्यरूप प्रवृत्ति को तथा तमोगुण के कार्यरूप मोह (निद्रा और आलस्य आदि की बहुलता से अन्तःकरण और इन्द्रियों में चेतन शक्ति के लय होने को यहाँ ‘मोह’ नाम से समझना चाहिए) को भी न तो प्रवृत्त होने पर उनसे द्वेष करता है और न निवृत्त होने पर उनकी आकांक्षा करता है। (जो पुरुष एक सच्चिदानन्दघन परमात्मा में ही नित्य, एकीभाव से स्थित हुआ इस त्रिगुणमयी माया के प्रपंच रूप संसार से सर्वथा अतीत हो गया है, उस गुणातीत पुरुष के अभिमानरहित अन्तःकरण में तीनों गुणों के कार्यरूप प्रकाश, प्रवृत्ति और मोहादि वृत्तियों के प्रकट होने और न होने पर किसी काल में भी इच्छा-द्वेष आदि विकार नहीं होते हैं, यही उसके गुणों से अतीत होने के प्रधान लक्षण है)॥22॥

-: English Meaning :-

The Lord says – Light and activity and delusion present, O Pandava, he hates not, nor longs for them absent.


गीता चौदहवाँ अध्याय श्लोक –

उदासीनवदासीनो गुणैर्यो न विचाल्यते ।
गुणा वर्तन्त इत्येव योऽवतिष्ठति नेङ्गते ॥१४-२३॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जो साक्षी के सदृश स्थित हुआ गुणों द्वारा विचलित नहीं किया जा सकता और गुण ही गुणों में बरतते (त्रिगुणमयी माया से उत्पन्न हुए अन्तःकरण सहित इन्द्रियों का अपने-अपने विषयों में विचरना ही ‘गुणों का गुणों में बरतना’ है) हैं- ऐसा समझता हुआ जो सच्चिदानन्दघन परमात्मा में एकीभाव से स्थित रहता है एवं उस स्थिति से कभी विचलित नहीं होता॥23॥

-: English Meaning :-

He who, seated as a neutral, is not moved by gunas; who, thinking that gunas act, is firm and moves not;


गीता चौदहवाँ अध्याय श्लोक –

समदुःखसुखः स्वस्थः समलोष्टाश्मकाञ्चनः ।
तुल्यप्रियाप्रियो धीरस् तुल्यनिन्दात्मसंस्तुतिः ॥१४-२४॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जो निरन्तर आत्म भाव में स्थित, दुःख-सुख को समान समझने वाला, मिट्टी, पत्थर और स्वर्ण में समान भाव वाला, ज्ञानी, प्रिय तथा अप्रिय को एक-सा मानने वाला और अपनी निन्दा-स्तुति में भी समान भाव वाला है॥24॥

-: English Meaning :-

He to whom pain and pleasure are alike, who dwells in the Self, to whom a clod of earth and stone and gold are alike, to whom the dear and the un-dear are alike, who is a man of wisdom, to whom censure and praise are same;


गीता चौदहवाँ अध्याय श्लोक –

मानापमानयोस् तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः ।
सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः स उच्यते ॥१४-२५॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जो मान और अपमान में सम है, मित्र और वैरी के पक्ष में भी सम है एवं सम्पूर्ण आरम्भों में कर्तापन के अभिमान से रहित है, वह पुरुष गुणातीत कहा जाता है॥25॥

-: English Meaning :-

The same in honor and disgrace, the same towards friends and enemies, abandoning all undertakings – he is said to have crossed beyond the gunas.


गीता चौदहवाँ अध्याय श्लोक –

मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते ।
स गुणान्समतीत्यैतान् ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥१४-२६॥

-: हिंदी भावार्थ :-

और जो पुरुष अव्यभिचारी भक्ति योग (केवल एक सर्वशक्तिमान परमेश्वर वासुदेव भगवान को ही अपना स्वामी मानता हुआ, स्वार्थ और अभिमान को त्याग कर श्रद्धा और भाव सहित परम प्रेम से निरन्तर चिन्तन करने को ‘अव्यभिचारी भक्तियोग’ कहते हैं) द्वारा मुझको निरन्तर भजता है, वह भी इन तीनों गुणों को भलीभाँति लाँघकर सच्चिदानन्दघन ब्रह्म को प्राप्त होने के लिए योग्य बन जाता है॥26॥

-: English Meaning :-

And he who serves Me with unfailing Devotion of Love, he, crossing beyond those three gunas, is fitted for becoming Brahman.


गीता चौदहवाँ अध्याय श्लोक –

ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहम मृतस्याव्ययस्य च ।
शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च ॥१४-२७॥

-: हिंदी भावार्थ :-

क्योंकि उस अविनाशी परब्रह्म का और अमृत का तथा नित्य धर्म का और अखण्ड एकरस आनन्द का आश्रय मैं हूँ॥27॥

-: English Meaning :-

For I am the abode of Brahman, the Immortal and the Immutable, the Eternal Dharma and the unfailing Bliss.


गीता तेरहवाँ अध्याय अर्थ सहित

2 thoughts on “गीता चौदहवाँ अध्याय अर्थ सहित Bhagavad Gita Chapter – 14 with Hindi and English Translation”

    • बहुत सुंदर संकलन और तीनों भाषाओं में अनुवाद अत्यन्त प्रसन्नीय है

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