गीता तेरहवाँ अध्याय श्लोक –
इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासतः ।
मद्भक्त एतद्विज्ञाय मद्भावायोपपद्यते ॥१३-१८॥
-: हिंदी भावार्थ :-
इस प्रकार क्षेत्र तथा ज्ञान और जानने योग्य परमात्मा का स्वरूप संक्षेप में कहा गया। मेरा भक्त इसको तत्व से जानकर मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है॥18॥
-: English Meaning :-
Thus the Kshetra, as well as knowledge and the Knowable, have been briefly set forth. My devotee, on knowing this, is fitted for My state.
गीता तेरहवाँ अध्याय श्लोक –
प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्ध्यनादी उभावपि ।
विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसंभवान् ॥१३-१९॥
-: हिंदी भावार्थ :-
प्रकृति और पुरुष- इन दोनों को ही तू अनादि जान और राग-द्वेषादि विकारों को तथा त्रिगुणात्मक सम्पूर्ण पदार्थों को भी प्रकृति से ही उत्पन्न जान॥19॥
-: English Meaning :-
Know thou that Prakriti as well as Purusha are both beginning-less; and know thou also that all forms and qualities are born of Prakriti.
गीता तेरहवाँ अध्याय श्लोक –
कार्यकरणकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते ।
पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते ॥१३-२०॥
-: हिंदी भावार्थ :-
कार्य (आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी तथा शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध -इनका नाम ‘कार्य’ है) और करण (बुद्धि, अहंकार और मन तथा श्रोत्र, त्वचा, रसना, नेत्र और घ्राण एवं वाक्, हस्त, पाद, उपस्थ और गुदा- इन 13 का नाम ‘करण’ है) को उत्पन्न करने में हेतु प्रकृति कही जाती है और जीवात्मा सुख-दुःखों के भोक्तपन में अर्थात भोगने में हेतु कहा जाता है॥20॥
-: English Meaning :-
As the producer of the effect and the instruments, Prakriti is said to be the cause; as experiencing pleasure and pain, Purusha is said to be the cause.
गीता तेरहवाँ अध्याय श्लोक –
पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान्गुणान् ।
कारणं गुणसङ्गोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु ॥१३-२१॥
-: हिंदी भावार्थ :-
प्रकृति में स्थित ही पुरुष प्रकृति से उत्पन्न त्रिगुणात्मक पदार्थों को भोगता है और इन गुणों का संग ही इस जीवात्मा के अच्छी-बुरी योनियों में जन्म लेने का कारण है। (सत्त्वगुण के संग से देवयोनि में एवं रजोगुण के संग से मनुष्य योनि में और तमो गुण के संग से पशु आदि नीच योनियों में जन्म होता है।)॥21॥
-: English Meaning :-
Purusha, when seated in Prakriti, experiences the qualities born of Prakriti. Attachment to the qualities is the cause of his birth in good and evil wombs.
गीता तेरहवाँ अध्याय श्लोक –
उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः ।
परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन्पुरुषः परः ॥१३-२२॥
-: हिंदी भावार्थ :-
इस देह में स्थित यह आत्मा वास्तव में परमात्मा ही है। वह साक्षी होने से उपद्रष्टा और यथार्थ सम्मति देने वाला होने से अनुमन्ता, सबका धारण-पोषण करने वाला होने से भर्ता, जीवरूप से भोक्ता, ब्रह्मा आदि का भी स्वामी होने से महेश्वर और शुद्ध सच्चिदानन्दघन होने से परमात्मा- ऐसा कहा गया है॥22॥
-: English Meaning :-
Spectator and Permitter, Supporter, Enjoyer, the Great Lord and also spoken of as the Supreme Self, (is) the Purusha Supreme in this body.
गीता तेरहवाँ अध्याय श्लोक –
य एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणैः सह ।
सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते ॥१३-२३॥
-: हिंदी भावार्थ :-
इस प्रकार पुरुष को और गुणों के सहित प्रकृति को जो मनुष्य तत्व से जानता है (दृश्यमात्र सम्पूर्ण जगत माया का कार्य होने से क्षणभंगुर, नाशवान, जड़ और अनित्य है तथा जीवात्मा नित्य, चेतन, निर्विकार और अविनाशी एवं शुद्ध, बोधस्वरूप, सच्चिदानन्दघन परमात्मा का ही सनातन अंश है, इस प्रकार समझकर सम्पूर्ण मायिक पदार्थों के संग का सर्वथा त्याग करके परम पुरुष परमात्मा में ही एकीभाव से नित्य स्थित रहने का नाम उनको ‘तत्व से जानना’ है) वह सब प्रकार से कर्तव्य कर्म करता हुआ भी फिर नहीं जन्मता॥23॥
-: English Meaning :-
He who thus knows Purusha and Prakriti together with qualities, whatever his conduct, he is not born again.
गीता तेरहवाँ अध्याय श्लोक –
ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना ।
अन्ये सांख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे ॥१३-२४॥
-: हिंदी भावार्थ :-
उस परमात्मा को कितने ही मनुष्य तो शुद्ध हुई सूक्ष्म बुद्धि से ध्यान द्वारा हृदय में देखते हैं, अन्य कितने ही ज्ञानयोग द्वारा और दूसरे कितने ही कर्मयोग द्वारा देखते हैं अर्थात प्राप्त करते हैं॥24॥
-: English Meaning :-
By meditation some behold the Self in the self by the self others by Sankhya Yoga and others by Karma Yoga.
गीता तेरहवाँ अध्याय श्लोक –
अन्ये त्वेवमजानन्तः श्रुत्वान्येभ्य उपासते ।
तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः ॥१३-२५॥
-: हिंदी भावार्थ :-
परन्तु इनसे दूसरे अर्थात जो मंदबुद्धिवाले पुरुष हैं, वे इस प्रकार न जानते हुए दूसरों से अर्थात तत्व के जानने वाले पुरुषों से सुनकर ही तदनुसार उपासना करते हैं और वे श्रवणपरायण पुरुष भी मृत्युरूप संसार-सागर को निःसंदेह तर जाते हैं॥25॥
-: English Meaning :-
Yet others, not knowing thus, worship, having heard from others; they, too, cross beyond death, adhering to what they heard.
गीता तेरहवाँ अध्याय श्लोक –
यावत्संजायते किंचित् सत्त्वं स्थावरजङ्गमम् ।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगा त्तद्विद्धि भरतर्षभ ॥१३-२६॥
-: हिंदी भावार्थ :-
हे अर्जुन! यावन्मात्र जितने भी स्थावर-जंगम प्राणी उत्पन्न होते हैं, उन सबको तू क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के संयोग से ही उत्पन्न जान॥26॥
-: English Meaning :-
What ever being is born, the unmoving or the moving, know thou, O best of the Bharatas, that to be owing to the union of Kshetra and Kshetrajna.
गीता तेरहवाँ अध्याय श्लोक –
समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम् ।
विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति ॥१३-२७॥
-: हिंदी भावार्थ :-
जो पुरुष नष्ट होते हुए सब चराचर भूतों में परमेश्वर को नाशरहित और समभाव से स्थित देखता है वही यथार्थ देखता है॥27॥
-: English Meaning :-
He sees who sees the Supreme Lord, remaining the same in all beings, the undying in the dying.
गीता तेरहवाँ अध्याय श्लोक –
समं पश्यन्हि सर्वत्र समवस्थितमीश्वरम् ।
न हिनस्त्यात्मनात्मानं ततो याति परां गतिम् ॥१३-२८॥
-: हिंदी भावार्थ :-
क्योंकि जो पुरुष सबमें समभाव से स्थित परमेश्वर को समान देखता हुआ अपने द्वारा अपने को नष्ट नहीं करता, इससे वह परम गति को प्राप्त होता है॥28॥
-: English Meaning :-
Because he who sees the Lord, seated the same everywhere, destroys not the self by the self, therefore he reaches the Supreme Goal.
गीता तेरहवाँ अध्याय श्लोक –
प्रकृत्यैव च कर्माणि क्रियमाणानि सर्वशः ।
यः पश्यति तथात्मान मकर्तारं स पश्यति ॥१३-२९॥
-: हिंदी भावार्थ :-
और जो पुरुष सम्पूर्ण कर्मों को सब प्रकार से प्रकृति द्वारा ही किए जाते हुए देखता है और आत्मा को अकर्ता देखता है, वही यथार्थ देखता है॥29॥
-: English Meaning :-
He sees, who sees all actions performed by Prakriti alone and the Self not acting.
गीता तेरहवाँ अध्याय श्लोक –
यदा भूतपृथग्भावमे कस्थमनुपश्यति ।
तत एव च विस्तारं ब्रह्म संपद्यते तदा ॥१३-३०॥
-: हिंदी भावार्थ :-
जिस क्षण यह पुरुष भूतों के पृथक-पृथक भाव को एक परमात्मा में ही स्थित तथा उस परमात्मा से ही सम्पूर्ण भूतों का विस्तार देखता है, उसी क्षण वह सच्चिदानन्दघन ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है॥30॥
-: English Meaning :-
When a man realizes the whole variety of beings as resting in the One and is an evolution from that (One) alone, then he becomes Brahman.
गीता तेरहवाँ अध्याय श्लोक –
अनादित्वान्निर्गुणत्वात् परमात्मायमव्ययः ।
शरीरस्थोऽपि कौन्तेय न करोति न लिप्यते ॥१३-३१॥
-: हिंदी भावार्थ :-
हे अर्जुन! अनादि होने से और निर्गुण होने से यह अविनाशी परमात्मा शरीर में स्थित होने पर भी वास्तव में न तो कुछ करता है और न लिप्त ही होता है॥31॥
-: English Meaning :-
Having no beginning, having no qualities, this Supreme Self, imperishable, though dwelling in the Body, O son of Kunti, neither acts nor is tainted.
गीता तेरहवाँ अध्याय श्लोक –
यथा सर्वगतं सौक्ष्म्यादाकाशं नोपलिप्यते ।
सर्वत्रावस्थितो देहे तथात्मा नोपलिप्यते ॥१३-३२॥
-: हिंदी भावार्थ :-
जिस प्रकार सर्वत्र व्याप्त आकाश सूक्ष्म होने के कारण लिप्त नहीं होता, वैसे ही देह में सर्वत्र स्थित आत्मा निर्गुण होने के कारण देह के गुणों से लिप्त नहीं होता॥32॥
-: English Meaning :-
As the all-pervading Akasa is, from its subtlety, never soiled, so the Self seated in the body everywhere is not soiled.
गीता तेरहवाँ अध्याय श्लोक –
यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः ।
क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत ॥१३-३३॥
-: हिंदी भावार्थ :-
हे अर्जुन! जिस प्रकार एक ही सूर्य इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार एक ही आत्मा सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता है॥33॥
-: English Meaning :-
As the one sun illumines all this world, so does the embodied One, O Bharata, illumines all bodies.
गीता तेरहवाँ अध्याय श्लोक –
क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोरेवमन्तरं ज्ञानचक्षुषा ।
भूतप्रकृतिमोक्षं च ये विदुर्यान्ति ते परम् ॥१३-३४॥
-: हिंदी भावार्थ :-
इस प्रकार क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के भेद को (क्षेत्र को जड़, विकारी, क्षणिक और नाशवान तथा क्षेत्रज्ञ को नित्य, चेतन, अविकारी और अविनाशी जानना ही ‘उनके भेद को जानना’ है) तथा कार्य सहित प्रकृति से मुक्त होने को जो पुरुष ज्ञान नेत्रों द्वारा तत्व से जानते हैं, वे महात्माजन परम ब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं॥34॥
-: English Meaning :-
They who by the eye of wisdom perceive the distinction between Kshetra and Kshetrajna and the dissolution of the Cause of beings – they go to the Supreme.
• गीता बारहवाँ अध्याय अर्थ सहित
Nice and use jull meaning