इस पोस्ट में श्रीमद्भगवत गीता चतुर्थ अध्याय को हिंदी अर्थ और अंग्रेजी अनुवाद के साथ दिया गया है। भगवद्गीता के चतुर्थ अध्याय को ज्ञानकर्मसंन्यासयोगः – ज्ञान कर्मसंन्यास योग (Yoga of Knowledge and Renunciation from Action) का अध्याय कहा जाता है। इस लिंक पे क्लिक करके पढ़िये गीता तृतीय अध्याय अर्थ सहित ।
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – १
श्रीभगवानुवाच इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्॥४-१॥
-: हिंदी भावार्थ :-
श्री भगवान कहते हैं – पहले मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा॥1॥
-: English Meaning :-
The Lord says – Initially I told this imperishable Yoga to the Sun; the Sun told it to (his son) Manu and Manu taught it to (his son) Ikshvaku.॥1॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – २
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप॥४-२॥
-: हिंदी भावार्थ :-
हे परन्तप अर्जुन! इस प्रकार परम्परा से प्राप्त इस योग को राजर्षियों ने जाना, किन्तु बहुत काल बीतने के बाद वह योग- परम्परा (पृथ्वी से) लुप्त हो गयी॥2॥
-: English Meaning :-
O Arjun, the tormentor of foes! This Yoga thus passed around the generations by the sage like Kings. But, after a long time that chain of succession got broken. ॥2॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – ३
स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्॥४-३॥
-: हिंदी भावार्थ :-
वही यह पुरातन योग आज मैंने तुमसे कहा है क्योंकि तुम मेरे भक्त और प्रिय सखा हो। यह बड़ा ही उत्तम रहस्य है॥3॥
-: English Meaning :-
That same ancient Yoga has been told by me to you today. Because you are my devotee and dear friend. This (Yoga) is the supreme secret. ॥3॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – ४
अर्जुन उवाच
अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः।
कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति॥४-४॥
-: हिंदी भावार्थ :-
अर्जुन बोले – आपका जन्म तो अभी हाल का है और सूर्य का जन्म बहुत पुराना है तब मैं इस बात को कैसे समझूँ कि आप ने ही (कल्प के) पूर्व में सूर्य से यह योग कहा था?॥4॥
-: English Meaning :-
Arjun says – Your birth is of near past and the birth of the Sun is very old. How can I understand that You taught this Yoga to the Sun in the beginning? ॥4॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – ५
श्रीभगवानुवाच बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप॥४-५॥
-: हिंदी भावार्थ :-
श्री भगवान बोले – हे परंतप अर्जुन! मेरे और तुम्हारे बहुत से जन्म हो चुके हैं तुम उन सबको नहीं जानते, पर मैं जानता हूँ॥5॥
-: English Meaning :-
The Lord says – O Arjun, the tormentor of foes! Many births of mine as well as yours have passed, I know all of them but you do not.॥5॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – ६
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया॥४-६॥
-: हिंदी भावार्थ :-
अजन्मा, अविनाशी और सभी प्राणियों का ईश्वर होते हुए भी मैं, अपनी प्रकृति को अधीन करके अपनी योगमाया से प्रकट होता हूँ॥6॥
-: English Meaning :-
Though I am unborn, imperishable and the Lord of all beings, yet I take birth by controlling My Nature through the power of (inexpressible) Maya.॥6॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – ७
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥४-७॥
-: हिंदी भावार्थ :-
हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने (साकार) रूप को रचता हूँ॥7॥
-: English Meaning :-
O Bharat! Whenever there is a decay of religion and growth of injustice then I manifest Myself (take a form).॥7॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – ८
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥
-: हिंदी भावार्थ :-
साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की यथार्थ स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ॥8॥
-: English Meaning :-
For the protection of the sages, for the destruction of evil-doers and for the firm establishment of the religion (the right path), I take birth in every age.॥8॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – ९
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन॥४-९॥
-: हिंदी भावार्थ :-
हे अर्जुन! जो मनुष्य मेरे जन्म और कर्म को तत्त्व से दिव्य जान लेता है, वह शरीर त्याग कर फिर जन्म नहीं लेता, किन्तु मुझे ही प्राप्त होता है॥9॥
-: English Meaning :-
O Arjun! A person who definitely knows my birth and action as divine is not born again on leaving his body but he comes to Me.॥9॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – १०
वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः।
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः॥४-१०॥
-: हिंदी भावार्थ :-
नष्ट आसक्ति, भय और क्रोध वाले, मुझसे अनन्य प्रेम करने वाले और मेरे आश्रित रहने वाले बहुत से भक्त ज्ञान रूपी तप से पवित्र होकर (पहले भी) मेरे स्वरूप को प्राप्त हो चुके हैं॥10॥
-: English Meaning :-
Many of my devotees, without attachments, fear and anger, with undivided love for Me, taking refuge in Me, purified by the fire (tapas) of their wisdom, have (earlier) attained Me.॥10॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – ११
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥४-११॥
-: हिंदी भावार्थ :-
जो भक्त मुझे जिस प्रकार से भजते हैं, मैं भी उनको उसी प्रकार से भजता हूँ। हे अर्जुन! ऐसे सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं॥11॥
-: English Meaning :-
As my devotees worship me, I too love them accordingly. O son of Prutha! All such devotees follow My path in every way.॥11॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – १२
काङ्क्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः।
क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा॥४-१२॥
-: हिंदी भावार्थ :-
इस मनुष्य लोक में कर्मों के फल को चाहने वाले देवताओं का पूजन करते हैं क्योंकि उससे कर्मों द्वारा होने वाली सिद्धि उनको शीघ्र मिल जाती है॥12॥
-: English Meaning :-
Those who wish for success in this world through actions worship the (other) Gods because by this they soon get success in their actions.॥12॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – १३
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्॥४-१३॥
-: हिंदी भावार्थ :-
चारों वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) को उनके गुण और कर्मों के विभाग पूर्वक मेरे द्वारा रचा गया है। उस सृष्टि-रचनादि कर्म का कर्ता होने पर भी मुझ अविनाशी को तुम अकर्ता ही जानो॥13॥
-: English Meaning :-
The four castes have been created by me along with their qualities and actions. Even though, I am the imperishable creator of this universe, know Me as the non-doer.॥13॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – १४
न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते॥४-१४॥
-: हिंदी भावार्थ :-
मुझे कर्मों के फल की कामना नहीं है इसलिए कर्म मुझे लिप्त नहीं करते। इस प्रकार जो तत्त्व से मुझे जान लेता है, वह भी कर्मों से नहीं बँधता॥14॥
-: English Meaning :-
I do not desire the fruits of my actions so those actions do not bind me. One who knows Me thus is also not bound by his actions.॥14॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – १५
एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म पूर्वैरपि मुमुक्षुभिः।
कुरु कर्मैव तस्मात्त्वं पूर्वैः पूर्वतरं कृतम्॥४-१५॥
-: हिंदी भावार्थ :-
पहले भी मोक्ष की इच्छा वाले मनुष्यों ने इस प्रकार जानकर ही कर्म किए हैं इसलिए तुम भी पूर्वजों जैसे ही सदा से किए जाने वाले कर्मों को ही करो॥15॥
-: English Meaning :-
People with a will to liberate had performed action like this in the past (with success). So you also perform the same type of actions as did your ancestors.॥15॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – १६
किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।
तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्॥४-१६॥
-: हिंदी भावार्थ :-
कर्म क्या है? अकर्म क्या है? इसका निर्णय करने में बुद्धिमान भी मोहित हो जाते हैं। इसलिए मैं तुमसे वह कर्म कहूँगा जिसे जानकर तुम अशुभ (कर्म-बंधन) से मुक्त हो जाओगे॥16॥
-: English Meaning :-
What is action? What is inaction? Even the wise get deluded in deciding this. I shall therefore, explain to you that action, by knowing which you shall be liberated from the inauspicious (bondage from actions).॥16॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – १७
कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः।
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः॥४-१७॥
-: हिंदी भावार्थ :-
कर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए और विकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए तथा अकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए क्योंकि कर्मों की गति गहन (छिपी हुई) है॥17॥
-: English Meaning :-
One should understand the essence of righteous actions, of the immoral actions and of the inaction because the effects (results) of actions are hidden.॥17॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – १८
कर्मण्यकर्म यः पश्येद कर्मणि च कर्म यः।
स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत्॥४-१८॥
-: हिंदी भावार्थ :-
जो कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है, वह मनुष्यों में बुद्धिमान है और वह योगी सभी कर्मों को करने वाला है॥18॥
-: English Meaning :-
One who sees inaction in action and action in inaction, he/she is wise among humans.He/she is established and is the doer of all the actions (i.e. nothing remains to be done by him/her).॥18॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – १९
यस्य सर्वे समारम्भाः कामसंकल्पवर्जिताः।
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः॥४-१९॥
-: हिंदी भावार्थ :-
जिसके सभी कर्मों के आरंभ बिना कामना और संकल्प के होते हैं और जिसके सभी कर्म ज्ञान रूपी अग्नि द्वारा जल चुके हैं, उसको ज्ञानी लोग भी पंडित कहते हैं॥19॥
-: English Meaning :-
One who starts all his actions without desires and purpose, who has burnt all his actions by the fire of wisdom, even the knowers of truth call him/her wise.॥19॥
गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक – २०
त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः।
कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किंचित्करोति सः॥४-२०॥
-: हिंदी भावार्थ :-
जो सभी कर्मों और उनके फल में आसक्ति का त्याग करके स्वयं में नित्य संतुष्ट है और संसार के आश्रय से रहित हो गया है, वह कर्म करता हुआ भी कुछ नहीं करता॥20॥
-: English Meaning :-
One who has given up attachment for the actions and their fruits, is ever content in Self and is without any dependence, he/she though engaged in actions, is a non-doer (in essence).॥20॥
Beautiful work!
But in chapter 4 only 20 shlokas are given.
Please give all shlokas of chapter 4.
I refer to it everyday and share it with about 30 friends everyday.
I understand everything when I buy a book I was not getting anything to know but after seeing this I understand